गौरैया (sparrow) पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कार्य करती है
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
हमारी सोच अब आहिस्ता-आहिस्ता बदलने लगी है। हम हम प्रकृति और जीव जंतुओं के प्रति थोड़ा मित्रवत भाव रखने लगे हैं। घर की टैरिश पर पक्षियों के लिए दाना-पानी डालने लगे हैं। गौरैया से हम फ्रेंडली हो चले हैं। किचन गार्डन और घर की बालकनी में कृतिम घोंसला लगाने लगे। गौरैया धीरे हमारे आसपास आने लगी है। उसकी चीं-चीं की आवाज हमारे घर आंगन में सुनाई पड़ने लगी है। गौरैया संरक्षण को लेकर ग्लोबल स्तर पर बदलाव आया है यह सुखद है। फिर भी अभी यह नाकाफी है। हमें प्रकृति से संतुलन बनाना चाहिए। हम प्रकृति और पशु -पक्षियों के साथ मिलकर एक सुंदर प्राकृतिक वातावरण तैयार कर सकते हैं। जिन पशु पक्षियों को हम अनुपयोगी समझते हैं वह हमारे लिए प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित करने में अच्छी खासी भूमिका निभाते हैं, लेकिन हमें इसका ज्ञान नहीं होता।
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गौरैया हमारी प्राकृतिक मित्र है और पर्यावरण में सहायक है।गौरैया प्राकृतिक सहचरी है। कभी वह नीम के पेड़ के नीचे फुदकती और चावल या अनाज के दाने को चुगती है। कभी घर की दीवार पर लगे आईने पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मारती दिख जाती। एक वक्त था जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में घोंसले लटके होते थे,लेकिन वक्त के साथ गौरैया एक कहानी बन गई। हालांकि पर्यावरण के प्रति जागरूकता के चलते हाल के सालों में यह दिखाई देने लगी है। गौरैया इंसान की सच्ची दोस्त भी है और पर्यावरण संरक्षण में उसकी खासी भूमिका भी है। दुनिया भर में 20 मार्च गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रधानमंत्री भी गौरैया संरक्षण के प्रयास को लेकर अच्छी पहल की है। जंगल में आजकल पंच सितारा संस्कृति विस्तार ले रही है। प्रकृति के सुंदर स्थान को भी इंसान कमाने का जरिया बना लिया है। जिसकी वजह पशु- पक्षियों के लिए खतरा बन गया है।
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प्रसिद्ध पर्यावरणविद् मोहम्मद ई. दिलावर के प्रयासों से 20 मार्च को चुलबुली गौरैया के लिए रखा गया। 2010 में पहली बार यह दुनिया में मनाया गया। गौरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इनसान की भोगवादी संस्कृति ने हमें प्रकृति और उसके साहचर्य से दूर कर दिया है। गौरैया एक घरेलू और पालतू पक्षी है। यह इंसान और उसकी बस्ती के पास अधिक रहना पसंद करती है। पूर्वी एशिया में यह बहुतायत पायी जाती है। यह अधिक वजनी नहीं होती। इसका जीवनकाल दो साल का होता है। यह पांच से छह अंडे देती है।भारत की आंध्र यूनिवर्सिटी
के एक अध्ययन में गौरैया की आबादी में 60 फीसदी से अधिक की कमी बताई गई है। ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी आफ प्रोटेक्शन आफ बर्ड्स ने इस चुलबुले और चंचल पक्षी को रेड लिस्ट में डाल दिया है। दुनिया भर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गौरैया की आबादी घटी है। गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास सबसे अधिक जिम्मेदार है।
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गौरैया पासेराडेई परिवार की सदस्य है लेकिन इसे वीवरपिंच परिवार का भी सदस्य माना जाता है। इसकी लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है। इसका वजन 25 से 35 ग्राम तक होता है। यह अधिकांश झुंड में रहती है। यह अधिक दो मील की दूरी तय करती है। मानव जहां-जहां गया, गौरैया उसका हमसफर बनकर उसके साथ गयी।गांवों में अब पक्के मकान बनाए जा रहे हैं। जिसका कारण है कि मकानों में गौरैया को अपना घोंसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल रही है।पहले गांवों में कच्चे मकान बनाए जाते थे।उसमें लकड़ी और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता था। कच्चे मकान गौरैया के लिए प्राकृतिक वातावरण और तापमान के लिहाज से अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराते थे, लेकिन आधुनिक मकानों में यह सुविधा अब उपलब्ध नहीं होती। यह पक्षी अधिक तापमान में नहीं रह सकता। देश की खेती-किसानी में रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता प्रयोग बेजुबान पक्षियों और गौरैया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। केमिकल युक्त रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से कीड़े-मकोड़े भी विलुप्त हो चले हैं। जिनमें गिद्ध, कौवा, महोख, कठफोड़वा, कौवा और गौरैया शामिल हैं। इनके भोजन का भी संकट खड़ा हो गया है।
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प्रसिद्ध पर्यावरणविद् मोहम्मद ई. दिलावर नासिक से हैं और वह बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से जुड़े रहे हैं। उन्होंने यह मुहिम 2008 से शुरू की थी। आज यह दुनिया के 50 से अधिक मुल्कों तक पहुंच गयी है। दिलावर के विचार में गौरैया संरक्षण के लिए लकड़ी के बुरादे से छोटे-छोटे घर बनाए जाएं और उसमें खाने की भी सुविधा भी उपलब्ध हो। घोंसले सुरक्षित स्थान पर हों, जिससे गौरैयों के अंडों और चूजों को हिंसक पक्षी और जानवर शिकार न बना सकें। हमें प्रकृति और जीव-जंतुओं के सरोकार से लोगों को परिचित कराना होगा। आने वाली पीढ़ी तकनीकी ज्ञान अधिक हासिल करना चाहती है, लेकिन पशु-पक्षियों से वह जुड़ना नहीं चाहती है। इसलिए हमें पक्षियों के बारे में जानकारी दिलाने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली नन्हीं सी गौरैया दो दशक पहले तक घर के मुड़ेरों पर, खेत खलिहानों में हर तरफ झुंड में उड़ती देखी जाती थी। लेकिन अब यह विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है। यह एक संकटग्रस्त और दुर्लभ पक्षी की श्रेणी में आ गई है।
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भारत के अलावा विश्व के कई हिस्सों में भी इनकी संख्या काफी कम रह गई है। इनके भोजन तथा पानी की कमी, पक्के मकान बनने से घोसलों के लिए उचित स्थानों का आभाव, पेड़-पौधे का कटान, बदलती जीवनशैली, मोबाइल रेडिएशन का दुष्प्रभाव,तापमान में लगातार होती बढ़ोतरी इत्यादि कई ऐसे प्रमुख कारण हैं। जो गौरैया की विलुप्ति का कारण बन रहे हैं। खेतों में कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से भी आज अंतरराष्ट्रीय गौरैया दिवस है। गौरैया पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र की सेवा करती है। गौरैया अधिकतर बाजरा, थीस्ल, खरपतवार और सूरजमुखी के बीज पसंद करती हैं। हालाँकि, वे फल और जामुन भी खाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, गौरैया फलों के पेड़ से दूर स्थानों पर बीज फैलाती हैं। यह बीजों के अंकुरण के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि बीज मूल पौधे के करीब गिरेंगे, तो उन्हें परिपक्व पौधे के साथ पोषण के लिए प्रतिस्पर्धा करनी होगी। इससे बीज के अंकुरण की संभावना कम हो जाएगी और बीज अंकुरित होने के बाद पौधे की वृद्धि भी कम हो जाएगी। बीज फैलाकर, गौरैया कई पौधों को जीवित रहने में मदद करती है जो पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादक हैं।
चहचहाते पक्षी वातावरण को शांतिपूर्ण रखते हैं और प्रकृति के संतुलन को बचाने में हमारी मदद करते हैं। प्रकृति को बचाने के लिए कोई भी व्यक्ति अपने ऑफिस, घर या फैक्ट्री में गौरैया घर बना सकता है और गौरैया को बचा सकता है। गौरैया घर के कुछ नमूने निम्नलिखित हैं, आप अपनी सुविधा के अनुसार रख सकते हैं।इनके अस्तित्व पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। प्रकृति संतुलन तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है कि हम पक्षियों के लिए वातावरण को उनके प्रति अनुकूल बनाने में सहायक बनें। बहरहाल, प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में हमारी सहभागी रही गौरेया के संरक्षण के लिए आज लोगों में बड़े स्तर पर जागरूकता पैदा किए जाने की सख्त जरूरत है। यही वक्त का तकाजा भी है। पृथ्वी पर हमें विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी मिलते हैं, जो हमारे प्राकृतिक वातावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
हालांकि, हमारी प्राकृतिक संपदा के दूसरी ओर, हम दुखी तौर पर जानते हैं कि दुनिया की जानवरों और पक्षियों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। यह गिरावट न केवल पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण हो रही है, बल्कि मुख्य रूप से मनुष्य की गतिविधियों और उनकी अज्ञानता के कारण भी हो रही है। इस पक्षी विलुप्ति एक गंभीर समस्या है, क्योंकि पक्षियों का महत्वपूर्ण योगदान हमारी प्राकृतिक पेयजल और खाद्य सुरक्षा में होता है। पक्षियों को बीज और फल बोने, उगाने और फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य मिलता है, जिससे वनस्पतियों का प्रजनन होता है। इसके अलावा, पक्षी भी कीट-नियंत्रण करने में मदद करते हैं, जो हमारे खेती और फसलों को सुरक्षित रखता है। पक्षियों का एक और महत्वपूर्ण योगदान हमारे बायोडायवर्सिटी को सुस्थिती बनाए रखना है।
पक्षियों के संकट ग्रस्त होने से हमारे प्राकृतिक परिदृश्य, बायोलॉजिकल संतुलन और वातावरणीय सेवाओं में कमी आती है। विलुप्त होते पक्षियों की प्रमुख कारणों में से एक हैं पर्यावरणीय परिवर्तन। जंगलों की कटाई, अनुचित वन्यजीव व्यापार, औद्योगिकीकरण, वन, आग, जल प्रदूषण, हवा प्रदूषण, जैव उपयोग और जलवायु परिवर्तन के कारण पक्षियों के आवास की हानि हो रही है। इसके अलावा,जीवाश्मी शस्त्रधारी पक्षी जैसे कीटों और रोगों के आक्रमण के कारण भी पक्षियों की संख्या में गिरावट होती है। इंसानी गतिविधियां भी एक महत्वपूर्ण कारक हैं, जैसे नगरीकरण, उर्वरकों और कीटनाशकों का अधिकतम उपयोग, वायु यातायात और भूमि संपत्ति की विस्तार योजनाएं है। पक्षियों को बचाने के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। पहले, हमें अपनी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
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प्रदूषण के कारण प्रकृति के दूसरे प्राणियों के जीवन पर संकट मंडराने लगा है. गौरैया तो लगभग विलुप्ति की कगार पर है। हमें अपने जीवन शैली में सतत वन्यजीवों के लिए स्थान छोड़ना होगा, जैसे कि उनके आवास के लिए उपयुक्त वन, नदी और झीलों की सुरक्षा और सफाई का ध्यान रखना होगा। बड़ी चुनौती बना हुआ है।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं )