एम्स ऋषिकेश (AIIMS Rishikesh) में शीघ्र शुरू होगी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया - Mukhyadhara

एम्स ऋषिकेश (AIIMS Rishikesh) में शीघ्र शुरू होगी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया

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एम्स ऋषिकेश (AIIMS Rishikesh) में शीघ्र शुरू होगी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया

  • लीवर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश्यकता
  • एम्स ऋषिकेश में आयोजित हुई राष्ट्रीय स्तर की सीएमई

ऋषिकेश/मुख्यधारा

एम्स ऋषिकेश को लीवर ट्रांसप्लांट की मंजूरी मिलने के बाद संस्थान ने इस जटिल प्रक्रिया को शुरू करने से पहले देशभर के नामी लीवर ट्रांसप्लांट शल्य चिकित्सकों के साथ सीएमई के माध्यम से व्यापक चर्चा की। वक्ताओं ने इस प्रक्रिया में आने वाली चुनौतियों से निपटने और उसे सरलीकृत करने की आवश्यकता जतायी।

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संस्थान के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी व गेस्ट्रोसर्जिकल विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व एम्स ऋषिकेश के अध्यक्ष प्रोफेसर समीरन नंदी ने कहा कि तकनीक और अनुभवी चिकित्सकों के बल पर भारत दुनिया में लीवर प्रत्यारोपण के अग्रणी केंद्रों में से एक बन गया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अंग दान और अंग प्रत्यारोपण को विनियमित करने वाले कानून किस प्रकार अस्तित्व में आए। प्रोफेसर समीरन ने कहा कि अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में हालाँकि अभी भी बहुत बाधाएँ हैं लेकिन भारत ने लीवर प्रत्यारोपण के क्षेत्र में एक लंबा सफर तय किया है। उन्होंने लीवर प्रत्यारोपण की संख्या के मामले में भारत को शीर्ष तीन देशों में से एक बताया।

उल्लेखनीय है कि एम्स ऋषिकेश को कुछ समय पूर्व ही लीवर ट्रांसप्लांट की अनुमति मिली है।

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इस सम्बंध में संस्थान की निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह ने मेडिकल व सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभागों के साथ घनिष्ठ समन्वय और पूर्ण समर्थन प्रदान करके अस्पताल में लीवर प्रत्यारोपण शुरू करने हेतु अपने दृष्टिकोण से अवगत कराया। कहा कि लीवर ट्रांसप्लांट शुरू होने से एम्स ऋषिकेश स्वास्थ्य क्षेत्र में और मजबूत हो सकेगा।

पीजीआई चंडीगढ़ के पूर्व निदेशक और संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर वाई. के. चावला ने अपने अनुभवों के आधार पर लीवर प्रत्यारोपण स्थापित करने में सरकारी संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों और उन्हें कैसे पार पाया जाए, इस सम्बंध में बताया।

एम्स ऋषिकेश के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख और कार्यक्रम के आयोजन अध्यक्ष डॉ. रोहित गुप्ता ने लीवर प्रत्यारोपण की स्थापना व इसकी आवश्यकताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने इस विषय पर व्याख्यान देने के लिए देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रतिष्ठित संकाय सदस्यों को सम्बोधित करते हुए अगले साल तक संस्थान में लीवर ट्रांसप्लांट शुरू करने की योजना साझा की।

इस दौरान विश्व प्रसिद्ध हेपेटोलॉजिस्ट, प्रोफेसर शिव कुमार सरीन ने प्रत्यारोपण से पहले अंग दाताओं के चयन और ट्रांसप्लांट की तैयारी के बारे में चर्चा की।

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संस्थान की इमरजेंसी मेडिसिन की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पूनम अरोड़ा ने किसी रोगी के ब्रेन डेड की अवधारणा के बारे में बात रखी, जबकि आईएलबीएस के लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन प्रोफेसर विनियेंद्र पामेचा ने चर्चा को आगे बढाते हुए सफल लीवर ट्रांसप्लांट सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सकों, सर्जनों और प्रशासन से आवश्यक समन्वय स्थापित करने की बात कही।

आईएलबीएस के ऑर्गन ट्रांसप्लांट एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ. गौरव सिंधवानी ने ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के दौरान आने वाली चुनौतियों और ट्रांसप्लांट के तुरंत बाद की अवधि के बारे में अपने अनुभव साझा किए।

इंस्टीट्यूट ऑफ डाइजेस्टिव एंड हेपेटोबिलरी साइंसेज, गुरुग्राम के कंसल्टेंट ट्रांसप्लांट हेपेटोलॉजिस्ट डॉ. स्वप्निल धमपालवार ने ट्रांसप्लांट के बाद पहले छह महीनों के प्रबंधन के विषय पर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस समय के दौरान इम्यूनोसप्रेशन महत्वपूर्ण है और लीवर प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ता के स्वास्थ्य की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए।

सीएमई में पीजीआई चंडीगढ़ के पूर्व निदेशक प्रोफेसर वाई.के. चावला द्वारा पोस्ट-ट्रांसप्लांट इम्यूनोसप्रेशन के बारे में विस्तार से बताया गया।

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आईएलबीएस, नई दिल्ली के प्रोफेसर विक्रम भाटिया ने प्रत्यारोपण के बाद पित्त संबंधी जटिलताओं के प्रबंधन, आईएलबीएस के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट प्रोफेसर अमर मुकुंद ने गंभीर रोगियों के प्रबंधन में रेडियोलॉजिस्ट की भूमिका के बारे में बताया।

उन्होंने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रक्तस्राव को रोकने के लिए पोर्टल नसों में दबाव कम करने के लिए टीआईपीएसएस करना और प्रत्यारोपण के बाद पित्त संबंधी जटिलताओं का निदान और प्रबंधन को बारीकी से समझाया।

संगोष्ठी में लीवर प्रत्यारोपण कार्यक्रम शुरू करने में आने वाली चुनौतियों पर पैनल चर्चा भी आयोजित की गई। पैनलिस्टों ने अपने स्वयं के अनुभवों और अपने संबंधित संस्थानों में उनके सामने आने वाली बाधाओं के बारे में बात की।

सीएमई में ट्रांसप्लांट प्रक्रिया की लागत, सामान्य आबादी के लिए वित्तपोषण विकल्प, मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे का एक साथ विकास करने जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई।

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कार्यक्रम में डीन एकेडमिक प्रोफेसर जया चतुर्वेदी, डीन रिसर्च डॉ. शेलेन्द्र हांडू, डॉ इतिश पटनायक, डॉ. आनंद शर्मा, डॉ. निर्झर राज, डॉ.लोकेश अरोड़ा, डॉ. गीता नेगी, डॉ. संजय अग्रवाल, डॉ. गौरव जैन, डॉ. मीनाक्षी धर, डॉ. रविकांत, डॉ. उदित चौहान, डॉ. पंकज शर्मा, डॉ. सुनीता सहित देहरादून के विभिन्न स्वास्थ्य संस्थाओं के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, फेकल्टी सदस्य व अन्य स्टाफ मौजूद रहा।

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