उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (uniform civil code) - Mukhyadhara

 उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (uniform civil code)

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 उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (uniform civil code)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने राज्य विधानसभा में समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024 विधेयक पेश कर दिया है। इसके साथ ही आज का दिन उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश के लिए यादगार बन गया है। कानून बनने के बाद उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य होगा। गोवा में पुर्तगाली शासन के दिनों से ही यूसीसी लागू है। यूसीसी के तहत प्रदेश में सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता, जमीन, संपत्ति और उत्तराधिकार के समान कानून लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों। उत्तराखंड के प्रस्तावित
समान नागरिक संहिता विधेयक को गोवा में 157 साल पहले बने कानून से बेहतर होने का दावा किया जा रहा है।

दावा है कि गोवा में कैथोलिक ईसाइयों और दूसरे समुदायों के लिए अलग- अलग नियम हैं। इसके उलट उत्तराखंड के यूसीसी में सभी के लिए समान अधिकार प्रस्तावित किए गए हैं। उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्य कमिटी बनाई थी। गोवा का कानून बहुत पुराना है। उसके बाद से अब तक समाज में कई अहम बदलाव आ गए हैं। ऐसे में उत्तराखंड के लिए यूसीसी की रिपोर्ट तैयार करने वाली कमिटी ने इसे अधिक सशक्त और बेहतर बनाया है। कमिटी के कुछ सदस्यों ने इसकी पुष्टि की है।

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दरअसल, गोवा में पुर्तगालियों ने 1867 में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया था। गोवा के भारत में विलय के बाद भी यह कानून अब तक वहां लागू है। पिछले दिनों राष्ट्रपति ने गोवा का दौरा किया था। उन्होंने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की प्रशंसा की थी। ऐसे में स्वाभाविक है कि धामी सरकार का प्रस्तावित यूनिफॉर्म सिविल कोड उत्तराखंड में लागू होने के बाद देश के अन्य राज्यों में नजीर बन सकता है।समान नगारिक संहिता यानी यूसीसी को लेकर सियासी माहौल गरमाया हुआ है। समान नागरिक संहिता संविधान का अहम हिस्सा है।यूसीसी केसमर्थक इसके फायदे गिना रहे हैं जबकि दूसरा पक्ष कमियां बताकर विरोध कर रहा है। संविधान सभा की बैठक में ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बीआर आंबेडकर ने भी यूसीसी के पक्ष दलीलें दी थीं। लेकिन यह लागू नहीं हो पाया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री भी इसे पक्ष में थे।

23 नवंबर 1948 को यूसीसी का मुद्दा पहली बार संविधान सभा में उठाया गया। इसे बॉम्बे (अब मुंबई) से कांग्रेस के सदस्य मीनू मसानी ने प्रस्तावित किया गया था, इस विषय पर जोरदार और व्यापक बहस हुई। उस समय, यूसीसी अनुच्छेद 35 के अंतर्गत आता था। समान नागरिक संहिता को सबसे पहले महिला सदस्यों का समर्थन मिला। संविधान सभा में 15 महिला सदस्य थीं। हंसा मेहता इन 15 में से एक थीं, और उन्होंने यूसीसी की पैरवी की थी। उनके अलावा, राजकुमारी अमृत कौर, डॉ. भीमराव अंबेडकर, मीनू मसानी, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी,अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर ने यूसीसी के कार्यान्वयन का मुखर समर्थन किया और इसके पक्ष में जोरदार तर्क दिया। 2 दिसंबर 1948 को इस बहस के निष्कर्ष पर बोलते हुए संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था, “इसमें कोई नई बात नहीं है।

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देश में विवाह, विरासत आदि मसलों को छोड़ कर पहले ही कई समान नागरिक संहिताएं हैं।”मुसलमान सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि धर्म कैसे इतनी जगह घेर सकता है कि सारा जीवन ही ढक ले और विधायी नियमों को जमीन पर उतरने से रोके। आखिर हमें ये आजादी किस लिए मिली है? हमें ये आजादी हमारी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिली है। “उन्होंने बहस समाप्त करते हुए निष्कर्ष में कहा, “यूनिफॉर्म सिविल कोड वैकल्पिक व्यवस्था है। ये अपने चरित्र के आधार पर नीति निदेशक सिद्धांत होगा। इसी वजह से राज्य फौरी तौर पर यह प्रावधान लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

राज्य को जब सही लगे तब इसे लागू कर सकता है। शुरुआती संशोधनों का जवाब देते हुए आंबेडकर ने कहा कि भविष्य में समुदायों की सहमति के आधार पर ही इस प्रावधान पर कानून बनाए जा सकते हैं और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किया जा सकता है। “उत्तराखंड यूसीसी ड्राफ्ट कमिटी ने अपनी विशिष्ट पहचान, पिछड़ेपन और विभिन्न कारणों से घटती जनसंख्या को देखते हुए राज्य की जनजातियों को समान नागरिक संहिता से बाहर रखने की सिफारिश की है। थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो प्रदेश में बोक्सा, राजी, थारू, भोटिया और जौनसारी जातियों को 1967 में जनजाति घोषित किया गया था। प्रदेश में बोक्सा और राजी जनजाति तो अन्य जनजातियों के मुकाबले अधिक पिछड़ी हैं।

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देश में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों की दशा सुधारने के लिए केंद्र की ओर से शुरू किए गए प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाभियान (पीएम- जनमन) में उत्तराखंड की बोक्सा और राजी जनजातियों को लिया गया है। इनके राज्य में 211 गांव हैं, जिनमें आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित करने के लिए 9 विभागों को जिम्मा सौंपा गया है। अब यूनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति ने भी राज्य की जनजातियों को विशेष रूप से महत्व दिया है। उनके पीछे इनके संरक्षण का भाव को समाहित किया गया है।

उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने देश की अहम तारीखों के सिलसिले में एक और अहम तारीख जोड़ दी है। देश के इतिहास में छह फरवरी 2024 की तारीख एक बेहद महत्वपूर्ण तारीख के तौर पर दर्ज हो गई है। उत्तराखंड सरकार ने आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी राज्य में समान नागरिक संहिता कानून पेश किया है। उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने देश की अहम तारीखों के सिलसिले में एक और अहम तारीख जोड़ दी है। देश के इतिहास में छह फरवरी 2024 की तारीख एक बेहद महत्वपूर्ण तारीख के तौर पर दर्ज हो गई है।

लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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