प्रदेशभर के पंचायत प्रतिनिधियों में सरकार के खिलाफ उबाल
देहरादून। जिला पंचायत सदस्य संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्ट एवं उत्तराखंड प्रमुख संगठन के अध्यक्ष महेंद्र सिंह राणा ने उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम 2016 में संशोधन की मांग की है। इस संबंध में दोनों नेताओं ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र भेजकर पंचायत प्रतिनिधियों की तुलना सांसद-विधायकों से न करते हुए इन प्रतिनिधियों की कमजोर आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपने व्यवसाय करने में छूट प्रदान करने की मांग की है। उन्होंने सरकार का ध्यान आकृष्ट करते हुए मांग की है कि लाखों रुपए वेतन भत्ते व सुविधाएं लेने वाले सांसद विधायकों से छोटे पंचायत प्रतिनिधियों प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य एवं ब्लॉक प्रमुखों को एक ही तराजू पर तौलना न्यायोचित नहीं है।
उत्तराखंड प्रमुख संगठन के अध्यक्ष एवं द्वारीखाल ब्लॉक प्रमुख महेंद्र सिंह राणा ने मुख्यमंत्री को प्रेषित पत्र में कहा है कि त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों को उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम में लोक सेवक की श्रेणी में जोड़कर त्रिस्तरीय पंचायतों को कमजोर करने की साजिश की गई है। उन्होंने कहा है कि इस तरह का अनुबंध विधायक-सांसदों पर उचित प्रतीत होता है, क्योंकि उन्हें राज्य व केंद्र सरकार द्वारा वेतन, भत्ते तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध होती है, किंतु त्रिस्तरीय पंचायतों में इसे लागू किया जाना कहीं से भी उचित नहीं है।
बताते चलें कि त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधि विभिन्न व्यावसायिक कार्य जैसे ठेकेदारी, निर्माण कार्य व अन्य व्यवसायों द्वारा अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। लेकिन उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम 2016 की धारा 30, 69 एवं 107 में उल्लिखित ‘लोक सेवक’ से संबंधित प्राविधान तथा उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम 2016 की धारा 8(1)(प), धारा 53(1)(प) एवं धारा 90 (1)(प) में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9क जोड़े जाने से संबंधित प्राविधान के कारण असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। ऐसे में इन पंचायत प्रतिनिधियों के समक्ष आर्थिकी की समस्या खड़ी हो गई है।
महेंद्र राणा ने मांग की है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से उत्तराखंड पंचायतराज अधिनियम 2016 की धारा 30, 69, 107 में इस आशय का संशोधन किया जाए कि त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि अपनी ग्राम पंचायत/क्षेत्र पंचायत/जिला पंचायत के अंतर्गत ही लोक सेवक समझे जाएं तथा उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम की धारा 8(1)(प), धारा 53(1)(प) एवं धारा 90 (1)(प) में जोड़ी गई लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9(क) को हटाने की मांग की है।
जिला पंचायत सदस्य संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्ट ने भी मुख्यमंत्री से इसी मांग का उचित हल निकालने की मांग की है। भट्ट ने कहा है कि पंचायतीराज अधिनियम 2016 की धारा 30 प्रधान, धारा 69 क्षेत्र पंचायत एवं धारा 107 में जिला पंचायतों को लोक सेवक माना गया है। इसके अलावा सांसद एवं विधायक भी पंचायत प्रतिनिधियों की भांति लोक सेवक हैं, किंतु सवाल यह है कि वेतन-भत्तों व अन्य सुविधाओं के मामले में पंचायत प्रतिनिधियों व सांसद विधायकों में भारी अंतर है।
प्रदीप भट्ट बताते हैं कि ग्राम प्रधान को प्रतिमाह रुपए 1500, उप प्रधान को 500, जिला पंचायत अध्यक्ष को 10 हजार, जिला पंचायत उपाध्यक्ष को 5000 रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। इसके अलावा जिला पंचायत सदस्य को प्रति बैठक के हिसाब से 1000, ब्लॉक प्रमुख को 6000 मासिक, उप प्रमुख को पंद्रह सौ मासिक और क्षेत्र पंचायत सदस्य को प्रति बैठक 500 रुपए मानदेय दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर सांसद एवं विधायकों को लाखों का वेतन भत्ते दिए जाते हैं।
प्रदीप भट्ट ने मांग की है कि सरकार या तो पंचायत प्रतिनिधियों को भी सांसदों व विधायकों के समान ही वेतन भत्ते की व्यवस्था करें, नहीं तो पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर पंचायत प्रतिनिधियों को अपना व्यवसाय करने हेतु आवश्यक कानूनी प्राविधान करे।
पंचायत प्रतिनिधियों की आजीविका के स्रोतों पर पंचायतीराज एक्ट के अंतर्गत नकेल कसे जाने के खिलाफ प्रदेशभर के प्रधानों, क्षेत्र पंचायत सदस्यों, जिला पंचायत सदस्यों एवं ब्लॉक प्रमुखों में सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है। जाहिर है कि यदि इसका उचित समाधान नहीं किया गया तो आने वाले विधानसभा चुनावों में भी इसका खामियाजा सरकार को ही भुगतना पड़ेगा।
बहरहाल, अब देखना यह है कि सरकार इस मामले में क्या निर्णय ले पाती है!