विधायक मनोज रावत की कलम से
रुद्रप्रयाग/मुख्यधारा
24 मई को केदारनाथ विधानसभा टेली मेडिसन सेवा के द्वारा हमें पता चला कि गडगू गांव में एक बच्ची मनीषा पिछले 3 महीनों से बीमार है और अब चल भी नहीं पा रही है। 25 मई को जब हमने मनीषा को एम्बुलेंस भेजकर उसकी दादी के साथ अगस्तमुनि पीजी कॉलेज स्थित डेडीकेटेड कोविड बुलाया तो मैं भी वहां पर था।
एंबुलेंस से उतरने के बाद मनीषा की शारीरिक स्थिति इस लायक नहीं थी कि वो अपने पैरों से चल सके। उसे कोरोना इन्फेक्शन बाद में था, पहले लंबे बुखार के कारण दर्द उसकी हड्डियों और जोड़ों तक पहुंच गया था। उसके गांव के लोग भी उसके ठीक होने को लेकर आशंकित थे। मनीषा को तुरंत चिकित्सा के लिए कोटेश्वर स्थित कोविड अस्पताल भेजा गया, जहां बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीतू तोमर की टीम ने उसे अच्छी तरह से देखा।
डॉक्टरों की देखभाल के बाद एक हफ्ते में ही नतीजे सामने आने लगे और मनीषा अपने पैरों पर चलने लगी। डॉक्टरों का मानना था कि अगर 1 सप्ताह और देर होती तो दर्द उसकी रीढ़ की हड्डी तक पंहुच जाता, फिर मुश्किलें बढ़ जाती। 14 दिन में ही मनीषा और उसकी दादी न केवल कोरोना से मुक्त हुए, बल्कि मनीषा भी ठीक-ठाक हो गई।
अगले 10 दिनों के लिए उसे अगस्तमुनि स्थित सेंटर में देखभाल के लिए रखा गया। 15 जून को फिर जांच के लिए जब मनीषा जिला अस्पताल गई तो मैं भी वहां मौजूद था। डॉक्टर उसकी प्रोग्रेस से संतुष्ट थे। अब मनीषा घर जा सकती थी, क्योंकि एक बच्ची को हमने उसके घर से उसकी दादी के साथ अकेले बुलाया था, इसलिए उसे घर तक पहुंचाना भी हमारा कर्तव्य था। मैं खुद मनीषा को छोड़ने उसके घर तक गया।
मनीषा बहुत सौभाग्यशाली है, अभी उसके दादा-दादी ही नहीं, बल्कि परदादी भी जीवित है। उस पर कितने प्यार की वर्षा होती होगी, यह आप समझ सकते हैं। गांव की लाडली मनीषा खुद भी बहुत केयरिंग है, घर पंहुचते ही देखा कि वो अपने चचेरे छोटे भाई – बहनों को बहुत प्यार से खिला रही थी।
एक साल पहले बष्टी की बीमार बेटी आरुषि ने जॉलीग्रांट में डॉक्टरों से लेकर सभी जानने वालों का दिल जीत लिया था। इस बार मनीषा को कोविड पॉजिटिव होने के कारण भले ही कोई मिल न पाए हों, पर फिर भी हमारे कई साथियों ने उसे फल भेजे और गिफ्ट भी दिए। हम चाहते हैं कि पहाड़ की बेटियां न केवल अपने व्यवहार से सबका का दिल जीतें, बल्कि सारी दुनिया को भी जीतें।
अब प्रश्न उठता है कि इतना घर-परिवार सब होने के बाद भी बीमार मनीषा को अस्पताल पंहुचने में 3 महीने क्यों लगे? जबाब साफ है कि हमारे पास सुविधायें, अस्पताल और डॉक्टर तो उपलब्ध थे, लेकिन मरीज और अस्पताल के बीच संवाद नहीं था। मरीज के परिजन आशंकित हैं कि क्या उसका इलाज हो पायेगा?
ये दूरी कोरोना में केदारनाथ विधानसभा और अब पूरे जिले के लिए काम कर रही “केदारनाथ टेलीमेडिसन सर्विस” की पूरी टीम ने पूरी की। उस गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ती बहिन सविता राणा यदि टेलीमेडिसन सर्विस की दून मेडिकल कॉलेज की डॉक्टर को संदेश नहीं भेजती तो हमें पता ही नहीं चलता कि मेरी विधानसभा के सबसे दूरस्थ गांव की कोई बेटी बीमार है।
ये दून मेडिकल कॉलेज द्वारा टेलीमेडिसन सर्विस की डॉक्टर्स की संवेदनशीलता थी कि उसने हमारे वॉलिंटियर्स को संदेश भेजा और हमने उचित समय पर निर्णय लेकर मनीषा को अस्पताल पहुंचा दिया और अस्पताल ने पूरी मेहनत कर बच्ची को स्वस्थ कर दिया।
इस टेलीमेडिसन सर्विस का लाभ मनीषा जैसे कई लोगों को मिला। हमने कोशिश की कि हम कोरोना में एक सिस्टम बनाएं। अब सिस्टम बन गया है इसे हम आगे भी चलाएंगे । मेरा मानना है कि पहाड़ की दुर्गम परिस्थितियों के लिए टेलीमेडिसन सर्विस ही सबसे अच्छा विकल्प है।जब से कोविड कर्फ्यू लगा है, हम सब मिलकर इसी सेवा और स्वास्थ्य सेवाओं को कैसे ठीक किया जाए पर काम कर रहे हैं। हम लंबे समाधान चाहते हैं। हमें केवल सिस्टम की बुराई ही नहीं करनी है, बल्कि राजनेता और समाजसेवक के रूप में विकल्प भी देने हैं।
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