जगदीश ग्रामीण
टिहरी गढ़वाल के विकासखंड जौनपुर की ग्राम पंचायत “ऐरल गांव” का एक गांव है “सेरा गांव”।
“सेरा गांव” धान की उपज के लिए मशहूर है। “सेरा गांव”, “गंधक पानी” के सम्मुख “सौंग नदी” के तट पर बसा हुआ एक रमणीक गांव है। इस गांव में सब्जी उत्पादन एवं धान की फसल बहुत अच्छी होती है।
चिंता की बात यह है कि “मालदेवता” से लेकर “सेरा गांव” तक रास्ता बहुत उबड़ – खाबड़ है। मार्ग वाहनों के लिए तो क्या कहें, पैदल चलने लायक तक नहीं है। हालांकि “मालदेवता से गंधक पानी” तक के मार्ग पर “बाइकर्स और साइकिल सवार” जान जोखिम में डालकर हर समय लगभग चलते रहते हैं। केवल बरसात में ही यह क्षेत्र सुनसान दिखाई देता है।
“गंधक पानी” पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है, लेकिन इस स्थान तक पहुंचने के लिए यदि सुंदर सा मार्ग बन जाए तो यहां के स्थानीय निवासियों को रोजगार भी उपलब्ध होगा और क्षेत्र की पहचान राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक भी होगी।
2013 की आपदा में “सेरा गांव” और “गंधक पानी” के बीच “सौंग नदी” पर जो पुल था वह बह गया था, जो कि आज तक पुनः नहीं बनाया जा सका है। इस पुल के बह जाने से “सेरा गांव” के निवासियों को और इसके आस – पास के अन्य गांवों के लोगों को बरसात में बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। नदी के दोनों तटों पर स्थित गांव के लोगों का आपस में बरसात में संपर्क भी नहीं हो पाता है। यदि इस स्थान पर पुनः पुल का निर्माण हो जाए तो “सेरा गांव” और पसनी गांव, मुड़िया गांव के लोग आपस में एक दूसरे के संपर्क में बरसात में भी बने रह सकते हैं।
सड़क, पुल और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में इस क्षेत्र के लोगों का जीवन बहुत कठिनाई में व्यतीत होता है। गांव के निवासियों इंद्र सिंह मनवाल, भगवान सिंह ऐरला, प्रताप सिंह ऐरला, मनोज सिंह, विजय सिंह ने उत्तराखंड सरकार से हाथ जोड़कर विनती है कि साहब हमारी भी सुन लीजिएगा। हम भी आपके ही प्रशंसक हैं, शुभचिंतक हैं। हमसे ऐसी क्या खता हो गई है कि आप हमारी ओर से नजरें हटाए हुए हैं।
सत्ता के सिंहासन पर बैठे नेताओं और अधिकारियों से गांव के लोग गुहार लगा रहे हैं कि कभी इन पगडंडियों पर भी आप कदम बढ़ाएं और हम दूरस्थ क्षेत्र के लोगों की समस्याओं से भी अवगत हों कि हम किन कठिनाइयों में जीवन यापन करते हैं। इस विकट नजारे को भी अपनी आंखों से देखें।
विकास के इंतजार में ‘सेरा गांव” के लोगों की आंखें पथरा गई हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि विकास की राह पर दौड़ते “उत्तराखंड” के साथ-साथ इस दूरस्थ गांव की जनता भी अपने को शामिल कर पाएगी। गांव के लोग भी चाहते हैं कि हमें शहर जैसी सुविधाएं भले ही न मिलें, लेकिन उसका कुछ हिस्सा तो हमारे हिस्से भी आना ही चाहिए।
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