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समान नागरिक संहिता (uniform civil code) भारतीय राजनीति के लिए ब्रह्मास्त्र

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समान नागरिक संहिता (uniform civil code) भारतीय राजनीति के लिए ब्रह्मास्त्र

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत के विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) पर एक नोटिस जारी किया है। इसके जरिए यूसीसी पर टिप्पणियां और सुझाव मांगी गई है।21 वीं विधि आयोग द्वारा पांच साल पहले 2018 में भी इस तरह के कुछ सवाल जारी किए गए थे। समान
नागरिक संहिता लंबे समय से भारतीय राजनीति में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है और इसे भारतीय संविधान में एक सिद्धांत के रूप में शामिल किया गया है। पूर्व कानून मंत्री रिजिजू बोल चुके हैं कि समान नागरिक संहिता 1998 और 2019 के चुनावों के लिए भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है। 40 साल पहले से ही समान नागरिक संहिता की बात सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हो रही है। 1985 में शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद को सामान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ना चाहिए।2015 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जरूरत को रेखांकित किया था। प्रधानमंत्री अपनी तीसरी कसम को पूरा करने जा रहे हैं? जी हां, तीसरी कसम! हालांकि इस नाम से एक फिल्म भी आई थी लेकिन फिलहाल यहां बात राजनीति की है।

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भारतीय जनता पार्टी ने इस देश की जनता से 3 बड़े वादे किए थे। पहला जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाएंगे, दूसरा अयोध्या में रामलला विराजमान की भूमि पर भव्य मंदिर बनेगा और तीसरा समान नागरिक संहिता बनेगी। इनमें से दो वादे पूरे हो चुके हैं। धारा 370 हट चुकी है, भगवान श्री राम का भव्य राम मंदिर बनने की ओर है और अब समान नागरिक संहिता को लेकर बीजेपी ने अपने कदम बढ़ा दिए हैं। क्या देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह मन बना लिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जाने से पहले वह यह धमाका करने वाले हैं। इस बात को बल तब मिला जब अचानक से विधि आयोग ने यानी कि लॉ कमीशन ने जनता से सुझाव मांग लिए। विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के एजेंडे को लेकर तमाम धार्मिक संस्थानों, बुद्धिजीवियों और व्यक्तिगत विचार मांगे हैं और अगले 30 दिन का समय दिया है। इस बात पर हंगामा तो होना ही था क्योंकि 2018 के बाद से ही विधि आयोग इस पर उतना सक्रिय दिखाई नहीं दे रहा था और उसके बाद अचानक से सक्रिय हुआ और सक्रिय हुआ भी तो इतना कि सिर्फ 30 दिन का समय दे करके यह कह दिया कि भैया 30 दिन में जो कहना है कह डालो। उसके बाद जब सुझाव आ जाएंगे तो ड्राफ्ट में संशोधन हो जाएगा और एक समग्र ड्राफ्ट सरकार के सामने होगा। चूंकि लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा समय भी नहीं है तो क्या हम यह कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने पूरा टाइम टेबल सेट करके यह काम किया है? उत्तराखंड राज्य ने भी इसी मसले पर एक सेवानिवृत्त महिला जज को लेकर के कमेटी बनाई थी और उस कमेटी को इस मसले पर दो लाख से भी अधिक सुझाव प्राप्त हुए थे। उस कमेटी ने वह रिपोर्ट तैयार कर ली है और माना जा रहा है कि जल्द ही यह रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार को सौंप दी जाए।

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केंद्र सरकार को भी इस रिपोर्ट की प्रतीक्षा है और इसी तरह गुजरात सरकार में भी इस प्रकार का अभ्यास चल रहा है।अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले अगर यह ब्रह्मास्त्र चलते हैं तो उसके राजनीतिक फायदे और नुकसान क्या क्या होंगे? समान नागरिक संहिता की मांग बहुत पुरानी है लेकिन कोई भी सरकार इस पर कदम उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।उनको लगता था कि अल्पसंख्यकों का वोट उनके हाथ से फिसल जाएगा लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन बना लिया है कि उन्हें करना है। ऐसे ही धारा 370  के लिए कहा जाता था कि उसे हटाना एक तरीके से असंभव कार्य है लेकिन प्रधानमंत्री ने वह करके दिखाया।तो ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता पर मन बना लिया है लोकसभा चुनाव 2024से पहले केंद्र की मोदी सरकार समान नागरिक सहिंता को लेकर बड़ा फैसला लेने वाली है? सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ने से पहले उत्तराखंड में बनाई गई समिति की रिपोर्ट का इंतजार है।

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सूत्रों के मुताबिक, अगले दो महीनों में उत्तराखंड की कमेटी की रिपोर्ट आने की संभावना है। उत्तराखंड में समिति की रिपोर्ट के आधार पर मॉडल कानून तैयार किया जाएगा। उसी मॉडल कानून को अन्य भाजपा शासित राज्यों और बाद में पूरे देश में लागू किया जा सकता है। और अगर ऐसा होता है तो भारतीय राजनीति के लिए कितना बड़ा ब्रह्मास्त्र होगा यह तो भविष्य ही बताएगा।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं )

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