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उत्तरकाशी के जंगल (Forest) हो रहे खाक

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उत्तरकाशी के जंगल (Forest) हो रहे खाक

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में जंगल धधक रहे हैं। यहां यमुना और गंगा घाटी के जंगलों में इस समय भीषण आग लगी हुई है। बीती रात यहां के बड़े क्षेत्र में जंगल जलते रहे। जंगल की आग की भीषणता को इसी से समझा जा सकता है कि सुबह चारों तरफ धुएं का गुबार नजर आया। जंगल की आग वन संपदा के साथ ही वन्यजीवों के लिए भी खतरा बना हुआ है। उत्तरकाशी जनपद के यमुना घाटी और गंगा घाटी के जंगलों में सर्दी के मौसम में भी आग लगी हुई है। अक्सर गर्मियों को मौसम में जंगलों में आगजनी की घटनाएं देखी जाती हैं, लेकिन इस बार सर्दी के मौसम में भी यहां भीषण आग लगी हुई है।

उत्तरकाशी के मुखेम रेंज, डुंडा रेंज और यमुना घाटी के अपर यमुना वन प्रभाग के जंगल धू-धू कर जल रहे हैं। जिससे लाखों की वन संपदा नष्ट हो रही है। आग में नष्ट हो रही वन संपदास्थानीय लोगों का कहना है कि जंगलों में आग लगने का मुख्य कारण ग्रामीण ही हैं। दरअसल, लोग घास उगाने के लिए जंगलों में आग लगाते हैं,इस वजह से भी कई बार आग फैल जाती है। जो काबू नहीं हो पाती इससे वन्य प्राणियों के साथ की आस-पास रह रहे लोगों के लिए भी मुसीबत खड़ी हो जाती है। गर्मी के मौसम में जलते हैं जंगलउत्तरकाशी में जंगल में आग लगने की घटनाएं अधिकतर गर्मियों के मौसम में होती हैं। यहां बीते मार्च में भी यमुना घाटी और टौंस घाटी के जंगलों में भीषण आग लग गई थी, जिस पर अप्रैल तक काबू नहीं पाया गया था. ऐसे में भारी मात्रा में वन संपदा नष्ट हुई।

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इसके अलावा आग लगने के कारण फैले धुंए का भी लोगों को स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. उत्तरकाशी में जंगल में आग लगने की घटनाएं अधिकतर गर्मियों के मौसम में होती हैं। यहां बीते मार्च में भी यमुना घाटी और टौंस घाटी के जंगलों में भीषण आग लग गई थी, जिस पर अप्रैल तक काबू नहीं पाया गया था। ऐसे में भारी मात्रा में वन संपदा नष्ट हुई। इसके अलावा आग लगने के कारण फैले धुंए का भी लोगों को स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. रतलब है कि शीतकालीन में मुखेम रेंज सहित मातली के ठीक सामने के जंगल में को आग लग गई. जंगल के कई हेक्टेयर से अधिक दायरे में लगी आग से वन संपदा को खासा नुकसान पहुंचा है। चीड़ के बड़े-बड़े पेड़ सुलगते रहे और कई पेड़ धराशायी होकर गिर गए।

सुबह से ही जंगल से आग की लपटें और धुआं उठता रहा, बावजूद इसके वन विभाग की टीम कहीं ढूंढने से नजर नहीं आई इस मामले में वन विभाग बेखबर रहा। देर शाम तक भी वन विभाग की टीम आग बुझाने मौके पर नहीं पहुंच सकी। ठंड के मौसम में जंगलों में आग लगने की घटना सामने से वन विभाग की मुश्किल बढ़ गई है। मुखेम रेंज के रेंजर ने बताया कि कि स्थानीय लोग ही पिरुल जलाने के लिए जंगलों में आग लगा रहे हैं टीम मौके पर है जल्द आग बुझा ली जाएगी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 में भी शीतकालीन सीजन में जंगलों में आग लगी थी। आज जंगलों में आग लगी है इस बार सुख के पढ़ने के कारण भी जंगलों में आग लग रही है जिला मुख्यालय से सटे मुखेम रेंज के कुटेटी देवी व दिलसौंड़- मातली के जंगलों में आग लगने से जंगल धधक-धधक कर जले। चीड़ के बड़े-बड़े पेड़ सुलगते रहे और कई पेड़ धराशायी होकर गिर गए।

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मंगलवार को सुबह से ही जंगल से आग की लपटें और धुआं उठता रहा। जंगल की आग और उसके धुएं से लोग बहुत परेशान दिखे। वन विभाग जंगलों की आग पर काबू पाने में नाकाम साबित दिख रहा है। प्रभागीय वनाधिकारी कोट बंगला से मामले में दूरभाष पर संपर्क करने की कोशिश की तो उन्हें फोन रिसीव नहीं किया।गौरतलब है कि शीतकालीन में मुखेम रेंज सहित मातली के ठीक सामने के जंगल में मंगलवार को आग लग गई। जंगल के कई हेक्टेयर से अधिक दायरे में लगी आग से वन संपदा को खासा नुकसान पहुंचा है।चीड़ के बड़े-बड़े पेड़ सुलगते रहे और कई पेड़ धराशायी होकर गिर गए। सुबह से ही जंगल से आग की लपटें और धुआं उठता रहा, बावजूद इसके वन विभाग की टीम कहीं ढूंढने से नजर नहीं आई।

इस मामले में वन विभाग बेखबर रहा। देर शाम तक भी वन विभाग की टीम आग बुझाने मौके पर नहीं पहुंच सकी। ठंड के मौसम में जंगलों में
आग लगने की घटना सामने से वन विभाग की मुश्किल बढ़ गई है। मुखेम रेंज के रेंजर प्रदीप बिष्ट ने बताया कि कि स्थानीय लोग ही पिरुल जलाने के लिए जंगलों में आग लगा रहे हैं। टीम मौके पर है जल्द आग बुझा ली जाएगी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020में भी शीतकालीन सीजन में जंगलों में आग लगी थी। आज जंगलों में आग लगी है इस बार सुख के पढ़ने के कारण भी जंगलों में आग लग रही है। अभी गर्मी का मौसम आने में समय है। लेकिन उत्तराखंड में गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक के जंगल जाड़ों के मौसम में ही धधक उठे हैं।

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बीते चार दिनों से जोशीमठ के जंगलों में धधक रही आग पर वन विभाग ग्रामीणों की मदद से काबू पाने का प्रयत्न कर रहा है, लेकिन आग बेकाबू हो ऐरा के जंगलों तक पहुंच गई है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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