चारधाम यात्रा में पर्यावरण संरक्षण चिंता का विषय
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भले ही चारधाम यात्रा करीब आ रही है, लेकिन पहाड़ी मंदिरों में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है, समस्या के समाधान के लिए न्यूनतम सक्रिय उपाय किए जा रहे हैं और इस साल भी कोई ठोस समाधान लागू नहीं किया गया है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीसीबी) के अधिकारियों के अनुसार , राज्य प्रतिदिन लगभग 1,500 से 1700 टन कचरा उत्पन्न करता है, उनका दावा है कि इसमें पर्यटकों और तीर्थयात्रियों द्वारा उत्पन्न कचरा भी शामिल है। भले ही चार धाम यात्रा करीब आ रही है, लेकिन पहाड़ी मंदिरों में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है, समस्या के समाधान के लिए न्यूनतम सक्रिय उपाय किए जा रहे हैं और इस साल भी कोई ठोस समाधान लागू नहीं किया गया है।
चारधाम यात्रा रूट पर पड़ने वाले सभी 27 छोटे-बड़े शहरों में इस यात्रा सीजन के दौरान प्लास्टिक को पूरी तरह से प्रतिबंधित रखा जाएगा साथ ही प्लास्टिक प्रतिबंध को प्रभावी रूप से धरातल पर उतारने के लिए इसके लिए मैन पावर की व्यवस्था करनी पड़ी तो उसको भी किया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने बताया कि यात्रा रूट पर पड़ने वाले सभी 27 शहरों में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर के पहले से ही काम चल रहा है। यात्रा सीजन के दौरान दबाव बढ़ने पर शहरी विकास विभाग की ओर से अतिरिक्त व्यवस्था भी की जाएगी।
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साल 2024 की चारधाम यात्रा के दौरान नगर निगम ऋषिकेश तीर्थ यात्रियों को पॉलिथीन का प्रयोग करने से रोकेगा। यात्रियों को पॉलिथीन के बदले जूट और कागज के थैले उपलब्ध कराये जाएंगे। इसके लिए रोडवेज बस स्टैंड और यात्रा ट्रांजिट कैंप परिसर में नगर निगम की ओर से काउंटर भी लगाए जाएंगे। काउंटर पर यात्रा पर जाने वाले प्रत्येक ग्रुप के सदस्य को पॉलिथीन को छोड़ जूट के थैले लेने के लिए निगम कर्मचारी जागरूक करेगा। फिलहाल, नगर निगम ने महिला स्वयं सहायता समूह के माध्यम से दस हजार जूट के थैले बनवाने शुरू कर दिए हैं। इस संबंध में नगर निगम के सभागार में नगर आयुक्त ने महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के साथ बैठक भी की। जिसमें जूट के थैले की गुणवत्ता का ख्याल रखने के लिए नगर आयुक्त ने महिलाओं को निर्देश दिए। नगर आयुक्त ने बताया चार धाम यात्रा पॉलिथीन मुक्त हो इसके लिए चार धाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश से शुरुआत की जा रही है। जूट के थैले का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा यात्री करें इसके लिए उत्तराखंड
परिवहन निगम और चार धाम यात्रा मार्ग पर बस संचालित करने वाली परिवहन कंपनियों से भी बातचीत की गई है। बसों में सवार होने से पहले चालक परिचालक यात्रियों को पॉलिथीन को टाटा बाय-बाय कर जूट के थैले नगर निगम के काउंटर से लेने के लिए प्रेरित करे इसके लिए प्रयास जारी है।
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सीएम ने कहा कि चारधाम यात्रा देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए आस्था के प्रमुख केन्द्र हैं। इसके एवज में ये सुनिश्चित किया जाए कि देवभूमि उत्तराखंड का अच्छा संदेश देश और दुनिया तक जाए। सीएम ने निर्देश दिये कि यात्रा मार्गों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाए। प्लास्टिक व वेस्ट मैनेजमेंट के लिए चारधाम यात्रा से जुड़े डिस्ट्रिक्ट के डीएम को प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से धनराशि उपलब्ध कराई जाए। निर्देश दिये कि यात्रा मार्गों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाए। प्लास्टिक व वेस्ट मैनेजमेंट के लिए चारधाम यात्रा से जुड़े डिस्ट्रिक्ट के डीएम को प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से धनराशि उपलब्ध कराई जाए। उत्तराखंड पहुंचे इस बार भी यात्रा रूट पर पड़ने वाले शहरों में और अधिक लोगों के आने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में अभी से ही सभी तैयारियां पूरी की जा रहीं है। जिससे यात्रा सीजन में अव्यवस्थाओं का सामना न करना पड़े। इन शहरों और धामों में कूड़ा न फैले इसके लिए भी प्रशासन सख्त है।
स्वच्छता और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए यात्रा में पड़ने वाले स्थानों पर प्लास्टिक प्रतिबंध रहेगी। नदियों में बहने वाला ठोस कचरा जल प्रदूषण का बड़ा कारण बन गया है। इस कचरे को निपटाने के प्रयास स्वच्छता अभियान में जोर पकड़ रहे हैं, किन्तु समस्या है कि कचरे को इकठा करके निपटाया कैसे जाए? यहाँ-वहां डंपिंग स्थलों में कचरा डाल देने के बाद उसमें आग लगने से वायु प्रदूषण, जमीन में रिसाव से भूजल और मिटटी प्रदूषण का खतरा बनता है। इस कचरे से बिजली बनाने के उन्नत तरीके, जिनमें वायु प्रदूषण का खतरा नहीं रहता, को
अपनाया जाना चाहिए। ऐसे विकल्पों की खोज सतत जारी रहनी चाहिए जो वर्तमान स्तर से प्रदूषण के खतरे को प्रभावी रूप से कम करने में समर्थ हों। उससे बेहतर समाधान मिल जाए तो उस नई तकनीक को अपनाया जाना चाहिए। हमारे ‘विश्व पर्यावरण दिवस,’जैव विविधता दिवस’ आदि मनाने की रस्म-अदायगी से आगे बढने से ही मंजिल हासिल होगी।
यह एक गलत बहाना है कि विकास के लिए पर्यावरण का नुकसान तो झेलना ही पड़ेगा। हमें पर्यावरण मित्र विकास के मॉडल की गंभीरता से खोज करनी होगी और हिमालय जैसे संवेदनशील प्राकृतिक स्थलों के लिए तो विशेष सावधानी प्रयोग करनी होगी। सरकार ने हिमालय में विकास के लिए एक प्राधिकरण का गठन किया है, उसको पर्वतीय विकास की सावधानियों को लागू करने, खोजने में अग्रसर होना चाहिए। हिमालय भारत के पारिस्थितिकी संरक्षण की रीढ़ है, यह बात जितनी जल्दी समझें उतना ही अच्छा।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )