‘भारतीय भाषा उत्सव’ : महावीर रवांल्टा (Mahavir Ravalta) की रवांल्टी की पहली कहानी ‘इके रौनु कि तेके’ का पाठ
नीरज उत्तराखंडी/पुरोला
उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी के हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाएं विभाग द्वारा चिन्नास्वामी सुवमण्यम भारती की स्मृति में आयोजित ‘भारतीय भाषा उत्सव’ के बहुभाषी रचना पाठ के कहानी सत्र में महावीर रवांल्टा द्वारा पहली बार रवांल्टी कहानी ‘इके रौनु कि तेके’ का पाठ किया गया जो रवांल्टी भाषा के लिए किसी ऐतिहासिक घटना से कम नहीं था।
7 जनवरी सन् 1995 ई को ‘जनलहर’ में प्रकाशित रवांल्टी कविता ‘दरवालु’ के माध्यम से हिन्दी साहित्य जगत में अच्छी दखल रखने वाले महावीर रवांल्टा ने रवांल्टी में लेखन की शुरुआत की और अनेक कविताएं रच डाली।उनकी 20 रवांल्टी कविताओं के सुप्रसिद्ध चित्रकार बी मोहन नेगी ने कविता पोस्टर बनाकर प्रदर्शित किए जिन्हें खूब सराहना मिली। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ ही स्थानीय मंचों तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन पर रवांल्टी कविताओं की प्रस्तुति से इस ओर उन्होंने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया।
भाषा-शोध एवं प्रकाशन केन्द्र वडोदरा(गुजरात) के भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण, उत्तराखण्ड भाषा संस्थान के भाषा सर्वेक्षण तथा पहाड़ (नैनीताल)के बहुभाषी शब्द कोश’झिक्कल काम्ची उडायली’ में रवांल्टी भाषा पर काम करने के साथ ही हिन्दी विभाग कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल एवं सोसायटी फॉर इंडेंजर्ड एंड लेस नॉन लेंग्वेजज (S E L) लखनऊ द्वारा आयोजित भाषा प्रलेखन एवं शब्दकोश निर्माण कार्यशाला में रवांल्टी को लेकर प्रतिभाग कर चुके महावीर रवांल्टा अनेक मंचों पर रवांल्टी को लेकर हिस्सेदारी कर चुके हैं।
भारत की जिन 870 भाषाओं पर कार्य हुआ है उनमें आज रवांल्टी भी शामिल है।रवांल्टी में उनके दो कविता संग्रह ‘गैणी जण आमार सुईन’ तथा’छपराल’ प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी साहित्य जगत के सुविख्यात हस्ताक्षर महावीर रवांल्टा की विभिन्न विधाओं में 38 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।उनके कथा साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में लघु शोध एवं शोध प्रबंध प्रस्तुत किए जा चुके हैं।
रंगकर्म एवं लोक साहित्य में गहरी रुचि के चलते अनेक नाटकों के लेखन,अभिनय और निर्देशन का श्रेय भी उन्हें जाता है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की ‘संस्कार रंग टोली’, कला दर्पण व बाल श्रमिक विद्यालय द्वारा उनकी कहानियों पर आधारित नाटक मंचित हो चुके हैं। पिछले दिनों उनकी लघुकथा ‘तिरस्कार’ पर लघु फिल्म का भी निर्माण हो चुका है।
उत्तराखंड मुक विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा उत्सव के समन्वयक डॉ राजेन्द्र कैड़ा और सत्र के संचालक डॉ अनिल कार्की ने पहली बार महावीर रवांल्टा की रवांल्टी कहानी के पाठ को एक बड़ी ऐतिहासिक घटना बताया।