सिरकुट पर्वत पर बसी हैं माता सुरकण्डा (Surkanda): वृक्षमित्र डॉ सोनी - Mukhyadhara

सिरकुट पर्वत पर बसी हैं माता सुरकण्डा (Surkanda): वृक्षमित्र डॉ सोनी

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सिरकुट पर्वत पर बसी हैं माता सुरकण्डा (Surkanda): वृक्षमित्र डॉ सोनी

देहरादून/मुख्यधारा

टिहरी जनपद के ब्लाक जौनपुर कद्दूखाल से महज 2.5 किमी पैदल चलकर मातारानी सुरकण्डा के मंदिर तक पहुचा जा सकता हैं अब सरकार ने श्रद्धालुओं के लिए रोपवे (रज्जुमार्ग) की सुविधा भी की हैं।

वैसे तो यहां मॉ के दर्शन के लिए सालभर लोग आते रहते हैं लेकिन नवरात्रों में इस मंदिर का विशेष महत्व है जो सच्ची श्रद्धा से आते हैं उनकी हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

सुरकण्डा मातारानी के दर्शन करने पहुंचे पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं जहां प्रकृति की अनोखी छटा पहाड़ो में देखने को मिलती हैं वही इन हसीन वादियों में मातारानी बसी हैं ताकि लोग मातारानी के दर्शन के साथ इन खूबसूरत स्थानों का लुत्फ ले सके।

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पौराणिक मान्यता है कि राजा दक्ष प्रजापति की बेटी सती थी उनका विवाह शिव भगवान से हुआ एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जहां पर सभी राजा महाराजाओं को बुलाया गया और उस यज्ञ में शिवजी को नही बुलाया। जैसी ही सती को इसकी सूचना मिली तो वह अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, सती ने शिव को यज्ञ में ना बुलाना अपने पति का अपमान समझा। कहा जाता है माता सती ने यज्ञकुंड में अपनी आहुति देते हुए अपना देह त्याग दिया जब यह सूचना शिव को मिला तो वे वहां पहुंच कर सती के मृत शरीर को भ्रमण पर निकल गए, शिव के इस रौद्ररूप को देखकर सभी भगवान चिंतन हो गए तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए जो टुकड़ा जहां गिरा उस स्थान को सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता हैं। डॉ सोनी कहते हैं सिरकुट पर्वत पर सती का सिर गिरा इस लिए इस स्थान का नाम सुरकण्डा पड़ा जहां माता सती की सिर की पूजा की जाती हैं।

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किरन सोनी कहती हैं इस मंदिर की अपनी विशेष महत्व हैं नवरात्रों में उत्तराखंड ही नही कई राज्यों से लोग मंदिर में माता सुरकण्डा के दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण की प्रार्थना माता सुरकण्डा से करते हैं।
पूजारी सोहन लाल लेखवार कहते हैं जो यहां पर ढोल बजता हैं वह एक अनोखी अनुभूति देती हैं और इस ढोल के थाप से माता का आह्वान किया किया जाता हैं। ढाई किमी की पैदल चढ़ाई चलकर मंदिर में भक्तगण कब पहुचते इसका पता ही नही चकता हैं यहां पहुचकर श्रद्धालु सकून महसूस करते हैं।

यही मातारानी की भक्ति व शक्ति है। त्रिलोक सिंह नकोटी, योगेश्वर उनियाल, शीशराम उनियाल, ढोलवादक सुरेश दास, देबदास, मध्यप्रदेश से विवेक पटेल, नेत्रराम लोधी व अन्य श्रद्धालु उपस्थित थे।

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