हेपेटाइटिस की दवाओं (Hepatitis medications) के संकटअधर में फंसे मरीज? - Mukhyadhara

हेपेटाइटिस की दवाओं (Hepatitis medications) के संकटअधर में फंसे मरीज?

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हेपेटाइटिस की दवाओं (Hepatitis medications) के संकटअधर में फंसे मरीज?

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

यकृत हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। पाचन में इसकी भूमिका के अलावा, इसके कई अन्य महत्वपूर्ण कार्य हैं जैसे विषाक्त पदार्थों को निकालना और प्रोटीन का संश्लेषण करना। हेपेटाइटिस एक बीमारी है जो यकृत की सूजन का कारण बनती है और इसे नुकसान पहुंचाती है। अगर अनियंत्रित होता है, तो यह यकृत की विफलता या यकृत कैंसर का कारण बन सकता है, जो कि घातक हो सकता है। मुख्य रूप से 4 वायरस इस बीमारी के कारक माने जाते हैं – ए, बी, सी और ई- और काफी हद तक रोके जा सकते हैं। 4 वायरस में से, हेपेटाइटिस ए और ई कम गंभीर और आमतौर पर अल्पकालिक संक्रमण होते हैं (ज्यादातर मामलों में स्वतः ठीक हो जाता है)। यह दूषित भोजन/पानी खाने या पीने के कारण होता है।

हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के अधिक गंभीर प्रकार हैं और दीर्घकालिक (पुरानी) संक्रमण का कारण बनते हैं। हेपेटाइटिस बी या सी वायरस के संक्रमण से यकृत को गंभीर क्षति हो सकती है जो लिवर सिरोसिस (पूर्ण स्कारिंग) से यकृत की विफलता और यहां तक कि कुछ मामलों में यकृत का कैंसर तक हो सकती है। वे उपचार जो केवल अंतिम चरणों में संभव है, यकृत प्रत्यारोपण है जो महंगा है,और सफलता दर लगभग 85 से 95% है।अधिकांश लोगों को यह पता नहीं होता है कि वे हेपेटाइटिस बी या सी से संक्रमित हैं; आमतौर पर वे वर्षों बाद जान पाते हैं, पर तब तक यकृत को गंभीर क्षति पहुँच जाती है और यकृत की विफलता की जटिलताएं पैदा हो चुकी होती है। कभी-कभी वे इसे नियमित रूप से चिकित्सा परीक्षा के दौरान जानते हैं।

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सौभाग्य से, हेपेटाइटिस सी प्रारंभिक अवस्था में पता चलने पर अब नए जमाने की दवाओं (3 से 6 महीने में) के साथ इलाज योग्य है। हालांकि हेपेटाइटिस बी वायरस का संक्रमण पूरी तरह से ठीक नहीं होता है, लेकिन दवाओं के प्रयोग से इसका प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है ताकि अधिकांश रोगी अपने जीवनकाल के दौरान स्वस्थ रहें। हेपेटाइटिस बी के लिए टीकाकरण अब सभी शिशुओं, और जोखिम वाले वयस्कों को बीमारी से बचाने के लिए किया जाता है। डब्ल्यूएचओ 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हेपेटाइटिस बी से संक्रमित 4 करोड़ लोग और हेपेटाइटिस सी से संक्रमित लगभग 1.2 करोड़ लोग हैं। हालांकि, हेपेटाइटिस बी और सी से पीड़ित 90% से अधिक लोगों को पता नहीं है कि वे संक्रमित हैं क्योंकि लक्षण रोग के बहुत बाद के चरण में दिखाई देते हैं। वायरस बिना किसी लक्षण के वर्षों तक यकृत को चुपचाप क्षति पहुंचा सकता है। जब तक संक्रमण का निदान, निगरानी और उपचार नहीं किया जाता है, तब तक इनमें से कई लोगों को अंततः गंभीर जानलेवा जिगर की बीमारी होगी।

अगर इलाज नहीं किया गया तो बीमारी और उच्च मृत्यु दर के भारी बोझ को देखते हुए, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर साल 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस का अवलोकन करना शुरू किया और वर्ष 2030 तक वायरल हैपेटाइटिस को खत्म करने के लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाया। भारत सरकार भी इस प्रयास में शामिल हुई और पिछले साल एक राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया। दोनों घातक संक्रमण (हेपेटाइटिस बी और सी) संक्रमित व्यक्ति से दूषित रक्त के माध्यम से फैलता है, नशीली दवाओं के बीच इंजेक्शन और सुइयों के आदान-प्रदान के माध्यम से, असुरक्षित कान छिदवाने और गोदने से, असुरक्षित यौन संबंध के माध्यम से, माँ से बच्चे तक और शेविंग रेजर, नेल कटर इत्यादि को साझा करने से। हेपेटाइटिस एक जानलेवा बीमारी मानी जाती है जो अक्सर सावधानी ना बरतने और साफ सफाई ना रखने के कारण फैलती है। जो व्यक्ति हेपेटाइटिस का शिकार होता है उसके लीवर में सूजन हो जाती है।

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एक शोध के अनुसार हर वर्ष लाखों की संख्या में लोग इस बीमारी के शिकार होते हैं। अक्सर ये बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है। हेपेटाइटिस-सी की गिरफ्त में आए लोगों को अब प्रदेश में मुफ्त इलाज मिल सकेगा।? रोगियों की महंगी हेपेटाइटिस-सी की जांचें और दवाओं की व्यवस्था निश्शुल्क की जाएंगी। मौजूदा समय में इसके इलाज में 40-50 हजार रुपये खर्च आता है। सरकारी अस्पतालों में हेपेटाइटिस की दवाओं का संकट हो गया है। जिस कारण मरीज बाहर से महंगे दाम में दवा खरीदने को मजबूर हो रहे हैं। दवाएं महंगी होने से गरीब मरीजों का इलाज अधर में फंस गया है।सरकार के नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत हेपेटाइटिस की जांच और इलाज निशुल्क किया जाता है सरकारी अस्पतालों में हेपेटाइटिस की दवाओं का संकट हो गया है। जिस कारण मरीज बाहर से महंगे दाम में दवा खरीदने को मजबूर हो रहे हैं। दवाएं महंगी होने से गरीब मरीजों का इलाज अधर में फंस गया है।

सरकार के नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत हेपेटाइटिस की जांच और इलाज निशुल्क किया जाता है। इसके लिए जनपद नैनीताल में दो सेंटर बनाए गये हैं। इनमें एक एसटीएच तथा दूसरा बीडी पांडे अस्पताल है।दोनों ही सेंटरों में हेपेटाइटिस ए, बी और सी के मरीजों की जांच से लेकर दवाएं निशुल्क मुहैया कराने जाने की व्यवस्था है। लेकिन पिछले डेढ़ माह से हेपेटाइटिस बी और सी की कुछ दवाओं की किल्लत बनी हुई है। जिसके चलते मरीजों का इलाज प्रभावित हो रहा है।मरीज दवाओं के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन कहीं भी दवा नहीं मिल पा रही है। ऐसे में उन्हें बाहर मोटी रकम चुकाकर दवा खरीदनी पड़ रही है।

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इधर, मामले में एसटीएच के फार्मेसी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दवाओं के लिए निदेशालय को डिमांड भेजी गई है। लेकिन अभी तक दवा उपलब्ध नहीं हो पाई है। दवा आते ही तुरंत बंटनी शुरू हो जायेगी। हेपेटाइटिस की दवा के लिए एसटीएच में रोजाना मरीज आते हैं।
इनमें बाहरी जनपदों व राज्यों के मरीजों की संख्या सबसे अधिक होती है। कुमाऊं का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल होने के कारण यहां रोजाना सैकड़ों मरीजों को निशुल्क दवा दी जाती है। यहां कुमाऊं के अलावा रुद्रपुर, किच्छा, सितारगंज, बाजपुर, केलाखेड़ा, काशीपुर,बहेड़ी, जसपुर,  बिलासपुर और मुरादाबाद तक से मरीज दवा लेने पहुंचते हैं। हेपेटाइटिस की दवाओं का संकट जनपद नैनीताल ही नहीं, ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर में भी हो गया है। यहां जिला अस्पताल में पिछले एक माह से हेपेटाइटिस की दवा खत्म है। हर दिन सैकड़ों मरीज मायूस होकर अस्पताल से लौट रहे हैं।

अस्पताल प्रशासन ने दवा केंद्र के बाहर सूचना चस्पा कर दी है। जिसमें लिखा है कि ‘काले पीलिया की दवाई वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।’ अस्पताल के पीएमएस के अनुसार दवा के लिए डिमांड भेजी गई है।अलग-अलग अध्ययनों के मुताबिक, परेशानी की बात यह है कि अभी तक जो संक्रमित मरीज मिले हैं, उनमें 90 प्रतिशत को रोग के बारे में तब पता चला जब किसी और इलाज के लिए उनकी खून की जांच कराई गई। यह वायरस खून के जरिये शरीर में जाकर धीरे-धीरे लिवर की कोशिकाओं को नष्ट करता है।जब रोगी को लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर होता है तो बीमारी पकड़ में आती है। इसका इलाज इतना महंगा है कि बहुत से रोगी इलाज ही नहीं करा पाते। यहां गौर करने वाली बात यह है कि पांच साल पहले तक इलाज में चार से आठ लाख रुपये खर्च आता था। बाद में, भारतीय कंपनियों के दवाएं बनाने के बाद इलाज का खर्च कम हो गया। हेपेटाइटिस-सी के मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर केंद्र सरकार एचआइवी के एआरटी सेंटर की तर्ज पर इस रोग के इलाज के लिए सेंटर शुरू कर रही है।

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राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संचालित मॉडल ट्रीटमेंट सेंटर पर न केवल मरीजों की स्क्रीनिंग, बल्कि उनका उपचार भी किया जाएगा। एचआइवी, पोलियो और टीबी उन्मूलन के तर्ज पर नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम चलेगा। यहां उल्लेखनीय है कि गत वर्ष जुलाई-
अगस्त में लक्सर के हस्तमौली गांव में हेपेटाइटिस-सी का संक्रमण कहर बनकर टूटा था। दो सौ से अधिक मरीजों के इसकी चपेट में आने से विभाग के भी हाथ-पांव फूल गए थे। यहां तक की खानपुर विधायक कुंवर प्रणव चैम्प्यिन ने मामला विधानसभा तक में उठाया था। अब नेशनल
वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत प्रदेश में मरीजों को निश्शुल्क इलाज देने की व्यवस्था की जा रही है। दिशा में कोई पहल नहीं कर पायी है।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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