बड़ी खबर : लावारिस हालातों में पड़े रुद्रप्रयाग जिले के पंचायती वन - Mukhyadhara

बड़ी खबर : लावारिस हालातों में पड़े रुद्रप्रयाग जिले के पंचायती वन

admin
images 23
ऐतिहासिक लोक प्रबन्धन का खुद सरकारें दबा रही हैं गला
रमेश पहाड़ी/रुद्रप्रयाग
जनपद रुद्रप्रयाग में पंचायती वनों के गठन का लगभग एक शताब्दी पुराना इतिहास है, लेकिन वर्तमान में 505 पंचायती वनों वाले इस जिले में उनका जो हाल है, उससे लगता है कि पंचायती वनों के अंग्रेजों द्वारा बनाये गये लोक प्रबन्धन का गला आजाद भारत की सरकारें खुद दबाती चली जा रही हैं। हालात ऐसे हैं कि न इनको कोई महत्व मिल रहा है और न काम, समय पर चुनाव कराना तो मानों इन लोक संस्थाओं के लिये सरकार की कोई प्राथमिकता ही नहीं है।
जन सूचना अभियान न्यास, रुद्रप्रयाग द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मॉगी गई सूचनाओं से तो यही निष्कर्ष निकलता है। माँगी गई अधिसंख्या सूचनायें तो तहसीलों में धारित ही नहीं हैं और कानून के द्वारा गठित तथा संचालित पंचायती वनों की सामान्य सूचनायें तक व्यवस्थित नहीं है। जिला प्रशासन, जो पंचायती वनों के गठन और उनकी प्रबन्धन समितियों अर्थात वन पंचायतों के गठन के लिए वैधानिक रूप से जिम्मेदार है तथा वन प्रभाग, जो पंचायती वनों के संचालन के लिए जिम्मेदार है, दोनों को जिले में वन पंचायतों की वास्तविक संख्या का तक पता नहीं है।
जिला प्रशासन के अभिलेखों में जनपद रुद्रप्रयाग में गठित पंचायती वनों की संख्या 505 है तो वन विभाग के आँकड़ों में यह संख्या 497 है। 8 पंचायती वन और उसको ढूँढने की जरूरत न जंगल विभाग को है और न जिला प्रशासन को ठीक उसी तरह जैसे जिला के शुरुआती आँकलित क्षेत्रफल 2439 वर्ग कि. मी. जो कि कुछ वर्षों बाद बिना किसी स्पष्टीकरण के 1984 वर्ग किमी. हो गया था। अर्थात न जनता पूछने को राजी न सरकारी तंत्र पता करके बताने को।
ज्ञात हो कि पंचायती वनों की स्थापना का अधिकार उत्तराखण्डवासियों के लम्बे और कठिन संघर्षों से हासिल हुआ था। उत्तराखण्ड के सघन वनों से पैसा कमाने की अंग्रेजी सत्ता की होड़ ने यहाँ वनों पर कब्जा करने और विभिन्न कानूनों की थोपाथोपी का सिलसिला शुरू किया और उसकी ताकत से 1911-17 के बीच उत्तराखण्ड के जंगलों को अपने कब्जे में लेना आरम्भ किया। जंगलों के मुनारे (सीमा स्तम्भ ) जब ग्रामीणों के मकानों और खेतों से चिपकाये जाने लगे तो उत्तराखण्डवासियों ने आन्दोलन किये, जिससे झुक कर सरकार ने कुमाऊँ कमिश्नर की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। समिति ने ग्रामीणों के वनाधिकारों की संस्तुति की और वनों की 2 श्रेणियां बनाकर प्रथम श्रेणी के वनों, जिसमें व्यापारिक महत्व की वृक्ष प्रजातियां कम थीं, उनमें लोगों को कास्तकारी का अधिकार देने का प्रस्ताव किया।
सरकार ने जनाक्रोश को शांत करने के लिए इन संस्तुतियों को तुरन्त मान लिया और 1925 में मद्रास प्रेसिडेंसी की तर्ज पर पंचायती वन बनाने का निर्णय लिया। इससे जनान्दोलन शांत हो गए और लोगों ने अपने समीपवर्ती जंगलों में अपनी व्यवस्था के अनुसार वनोत्पादों का संरक्षण और उपयोग आरम्भ कर दिया। यद्यपि वन अधिनियम 1927 में बना और उसकी धारा 28 में पंचायती वनों की स्थापना का प्रविधान किया गया तथा वन पंचायत नियमावली 1931 में बनी लेकिन लोगों ने 1925 में ही वन पंचायतों का गठन आरम्भ कर दिया था।
रुद्रप्रयाग जिले की रुद्रप्रयाग तहसील के पाटा गाँव में 1925 में ही ग्रामीणों ने पहले पंचायती वन का गठन किया, जिसे इस जिले का पहला ग्राम वन बनने का गौरव प्राप्त है। अगले 22 वर्षों, यानी देश की आजादी तक रुद्रप्रयाग जिले में लगभग 50 पंचायती वनों का गठन हो गया था लेकिन जिले में उनका व्यवस्थित ढंग से अभिलेख उपलब्ध है। क्योंकि न सरकार और न उसका तंत्र इस तथ्य की गम्भीरता को समझने को तैयार नहीं हैं कि उस जमाने में जब शिक्षा और चेतना का स्तर आज की तरह नहीं था, हमारे पूर्वजों ने वनों के जनोन्मुख प्रबन्धन का संचालन आरम्भ कर दिया था और आजादी के आन्दोलन में वन पंचायतों ने स्वशासन का एक अभिनव नमूना देशवासियों के सामने प्रस्तुत किया था। इसीलिये पंचायती वनों की ऐतिहासिक भूमिका को सर्वत्र मान्यता प्राप्त हुई।
समय के साथ वन पंचायत नियमावली में परिवर्तन स्वाभाविक थे लेकिन उनके प्रति सरकारी दायित्व बोध में कमी अत्यन्त चिन्ता का विषय है। सरकारों की लोक संगठनों के प्रति शिथिलता की सबसे अधिक शिकार वन पंचायतें ही हुई हैं।
2005 में अधिकाधिक ग्राम वन बनाने और उनके संचालन के लिये एक नई नियमावली बनाई गई, जिसमें उपजिलाधिकारियों को वन पंचायत के गठन का अधिकार दिया गया और वह स्वयं न जाने की स्थिति में अपने प्रतिनिधि को भेज कर वन पंचायत का गठन करवा सकता है। वन पंचायत का सचिव निकटस्थ वनकर्मी को बनाया गया और प्रत्येक राजस्व ग्राम में ग्राम वन बनाने का लक्ष्य तय किया गया। आरक्षित वनों से भूमि लेकर भी पंचायती वन बनाने के कानून पारित किये गए लेकिन इनमें से अधिसंख्य वन कागजों में फुल-फल रहे हैं।
रुद्रप्रयाग जिले में जिला प्रशासन की सूची में 505 पंचायती वन हैं जिनमें 212 (42%) रुद्रप्रयाग तहसील में हैं। सूचना अधिकार में माँगी गई 7 में से 4 सूचनायें तहसील कार्यालय में धारित नहीं थीं। जो 3 सूचनायें भेजी गईं, वे भी आशा जगाने वाली नहीं हैं। 72 पंचायती वनों में सरपंच नहीं हैं। कारणों में बताया गया कि इनमें से तीन चौथाई से अधिक पंचायती वनों में कोई व्यक्ति सरपंच बनने को ही तैयार नहीं है।
यह स्थिति उस तहसील में है, जिसमें लोगों ने 1925 में ही पंचायती वन बना कर उसका प्रबन्धन स्वयं चलाया था। मतलब साफ है कि सरकारी नीतियों कार्यक्रमों में व्याप्त अकर्मण्यता और लापरवाही ने लोगों को अपने बनायें वनों की पंचायतों से ही विमुख होने को विवश कर दिया है।

यह भी पढें :बड़ी खबर : 5 आईपीएस अधिकारियों का प्रमोशन। डीआईजी बने

यह भी पढें : गुड न्यूज : CM धामी ने टाॅपर छात्राओं को भेंट किए स्मार्ट फोन

Next Post

बड़ी खबर : धामी कैबिनेट ने लिया बड़ा फैसला

देहरादून/मुख्यधारा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आयोजित हुई कैबिनेट की बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले पर मुहर लगी है। सरकार ने उपनल कर्मचारियों को सरकार ने बड़ी सौगात दी है। अब 10 साल से ज्यादा समय से नौकरी […]
1634018226464

यह भी पढ़े