सवाल: अरुणाचल (Arunachal)को लेकर चीन इतना परेशान क्यों? साल 1950 के बाद दोनों देशों के बीच शुरू हुआ सीमा विवाद, दलाई लामा के भारत आने के बाद बौखलाया ड्रैगन
शंभू नाथ गौतम
(पिछले दिनों चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 11 स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की है। उसने ये नाम चीनी, तिब्बती और पिनयिन भाषाओं में जारी किए हैं। इसमें को-ओर्डिनेट्स के साथ जगहों के नाम बताए गए हैं। चीनी सरकार ने सूची में दो जमीनी क्षेत्र, दो आवासीय क्षेत्र, पांच पहाड़ी चोटियां और दो नदियों के नाम दिए हैं। चीनी से पहले भी ऐसी हरकत दो बार कर चुका है । 2017 में छह और 2021 में 15 स्थानों का नाम बदला गया था। नई दिल्ली हर बार चीन की इस करतूत पर उसे जवाब देता रहा है। ड्रैगन की इस हरकत के बाद भारत सरकार ने मुंह तोड़ जवाब दिया। भारत ने कहा कि नाम बदलने से हकीकत नहीं बदल जाएगी। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग था और आगे भी रहेगा।)
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चीन अपनी चालबाजी से कभी बाज नहीं आता। ड्रैगन समय-समय पर भारत को तनाव भी देता रहा है। हाल के समय में सबसे ज्यादा उसका निशाना उत्तर भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश को लेकर है। भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों पर चीन लंबे समय से अपना हक जमाता रहा है। समय-समय पर चीन अरुणाचल को लेकर विरोधी बयान से भारत की मुश्किलें बढ़ाता है। अब चीन ने अरुणाचल प्रदेश 11 स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की है। उसने ये नाम चीनी, तिब्बती और पिनयिन भाषाओं में जारी किए । ड्रैगन का ये कदम तब आया है, जब भारत ने हाल ही में सीमावर्ती राज्य अरुणचाल प्रदेश में जी20 कार्यक्रमों की शृंखला के तहत एक अहम बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में चीन शामिल नहीं हुआ था। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय की ओर से यह नाम बदले गए हैं।
चीन का कहना कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का हिस्सा है। इसलिए वो एक-एक करके अरुणाचल प्रदेश के सभी स्थानों के नाम बदल देगा। नाम बदलने की यह तीसरी घटना है। चीन ने अरुणाचल से जुड़ी जगहों का नाम अपने नक्शे में बदला है। चीन की इस हरकत के बाद भारत सरकार ने मुंह तोड़ जवाब दिया ।
भारत ने कहा कि नाम बदलने से हकीकत नहीं बदल जाएगी। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग था और आगे भी रहेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस तरह की कोशिश की हो, चीन पहले भी ऐसा कर चुका है, हम चीन के इस कदम को सिरे से खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि चीन भले ही अरुणाचल की जगहों का नाम बदले, लेकिन इससे हकीकत नहीं बदली जा सकती है। भारत की आपत्ति को बेमतलब की मानते हुए चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा है कि भारत को यह बात मान लेनी चाहिए जंगनान (अरुणाचल प्रदेश के लिए चीनी नाम) चीन का हिस्सा है, और इसलिए भारत हमारे आतंरिक मामलों पर बेजां टीका-टिप्पणी न करे। ये कदम चीन के संप्रभु अधिकारों के दायरे में रहकर ही उठाया गया है।
बता दें कि रविवार को चीनी मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के 11 स्थानों की सूची जारी की थी। इसमें को-ओर्डिनेट्स के साथ जगहों के नाम बताए गए हैं। चीनी सरकार ने सूची में दो जमीनी क्षेत्र, दो आवासीय क्षेत्र, पांच पहाड़ी चोटियां और दो नदियों के नाम दिए हैं। ऐसा पहली बार नहीं है कि चीन ने भारतीय क्षेत्र का नामकरण अपने हिसाब से किया हो। पहले भी दो बार वो ऐसी गुस्ताखी कर चुका है। ऐसा तीसरी बार किया गया है। 2017 में छह और 2021 में 15 स्थानों का नाम बदला गया था। नई दिल्ली हर बार चीन की इस करतूत पर उसे जवाब देता रहा है। बता दें कि साल 2017 में दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर गए थे। चीन ने उनकी इस यात्रा की आलोचना की थी और कुछ दिनों बाद पहली बार नाम को बदला था। पिछले कुछ वर्षों में चीन और भारत के संबंध तनावपूर्ण देखने को मिले हैं।
2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच डोकलान को लेकर स्टैंडऑफ देखने को मिला था। इसके अलावा व्यापार को लेकर भी चीन और भारत के बीच तनाव रहा है। भारत ने पिछले कई वर्षों में कई चीनी एप को बैन किया है। 4 महीने पहले यानी दिसंबर 2022 में चीन ने अरुणाचल के तवांग में भी घुसपैठ करने की कोशिश की थी। तवांग में चीनी सैनिकों से झड़प के बाद एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) का मुद्दा कई दिनों तक गरमाया रहा। अरुणाचल प्रदेश के यांगत्से इलाके में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ करने की कोशिश की। 300 के करीब चीनी जवानों ने एक तय रणनीति के तहत भारत की पोस्ट पर कब्जा करने का लक्ष्य रखा। लेकिन वहां मौजूद भारतीय सैनिकों ने उनके मंसूबों को फेल कर दिया। ऐसे में चीन के तमाम दावे भी जमीन पर फेल होते हैं और उसकी भारत के खिलाफ साजिशें भी विफल होती दिख जाती हैं। 9 दिसंबर साल 2022 को तवांग में भारतीय पोस्ट को हटवाने के लिए चीनी सैनिक आए थे।
भारतीय जवानों ने देखा तो तुरंत मोर्चा संभाला और भिड़ गए। भारतीय जवानों को भारी पड़ता देख चीनी सैनिक पीछे हटे। इस हिंसक घटना में 6 भारतीय जवान घायल हुए , चीन की तरफ से कोई आंकड़ा जारी नहीं हुआ था लेकिन बड़ी संख्या में उसके जवान जख्मी थे।
साल 1950 के बाद भारत की चीन के साथ सीमा विवाद की हुई थी शुरुआत
चीन के वो दावे सिर्फ दावे ही माने जा सकते हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में अरुणाचल प्रदेश को भारत का ही अभिन्न अंग माना गया है। वैसे भी तिब्बत और भारत का अपना अलग इतिहास है. चीन की तो एंट्री काफी बाद में हुई। असल में 1912 तक तो भारत और तिब्बत के बीच में कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। उन इलाकों में ना मुगलों का राज रहा और ना ही ब्रिटेन का। लेकिन जब अरुणाचल के तवांग में बौद्ध मंदिर मिला तो सीमा रेखा को निर्धारित करने का फैसला हुआ।
इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 1914 में शिमला में इस सिलसिले में एक अहम बैठक हुई थी। उस बैठक में भारत की तरफ से अंग्रेजों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी, तिब्बत के प्रतिनिधि थे और चीन के अधिकारियों को भी बुलाया गया था। उस बैठक में साफ कहा गया था कि अरुणाचल का तवांग और दक्षिणी हिस्सा भारत का हिस्सा माना जाएगा। तब तिब्बत की तरफ से भी उस फैसले को स्वीकार किया गया था। लेकिन हमेशा से अड़ियल रहे चीन ने उस समझौते को नहीं माना और उसके प्रतिनिधि बीच में ही बैठक छोड़कर चले गए। तब चीन की नजर तिब्बत पर थी ही, वो अरुणाचल को भी अपने हिस्से में लाना चाहता था। कई सालों तक ये विवाद ठंडा पड़ा रहा और कोई बड़ी घटना भी नहीं हुई।
बता दें कि चीन के साथ भारत का साल 1950 तक कोई विवाद था ही नहीं, इसकी वजह यह है कि पूर्व में भारत की सीमा चीन से लगी ही नहीं है। उस समय सिक्किम के नाथुला से तिब्बत होकर दक्षिण पश्चिम चीन तक पहुंचने वाले 543 किलोमीटर लंबे इस मार्ग को सिल्क रूट कहा जाता था। यह सड़क 1900 साल से भी ज्यादा समय तक इन तीनों क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा रही लेकिन 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद जहां सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा को लेकर विवाद शुरू हुआ, वहीं 1962 की लड़ाई के बाद देश-विदेश में मशहूर सिल्क रूट भी बंद हो गया हालांकि बाद में 2006 में उसे दोबारा खोला जरूर गया था लेकिन वह अक्सर बंद ही रहता है। कुछ साल पहले उसी सड़क से मानसरोवर यात्रा की भी शुरुआत हुई थी। दरअसल, भारत की सीमा चीन नहीं, बल्कि तिब्बत से सटी है। इन तमाम विवादों की शुरुआत 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद ही शुरू हुई। 1959 में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के अरुणाचल सीमा से होकर पैदल ही भारत पहुंचने के बाद सीमा को लेकर कटुता और बढ़ी। तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन की निगाहें हमेशा सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर रही हैं।
साल 1987 को अरुणाचल प्रदेश भारत का 24वां राज्य बना था
ऐतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि यह जाना-पहचाना क्षेत्र ही नहीं था वरन् जो लोग यहां रहते थे उनका देश के अन्य भागों से निकट का संबंध था। अरुणाचल प्रदेश का आधुनिक इतिहास 24 फरवरी, 1826 को ‘यंडाबू संधि’ होने के बाद असम में ब्रिटिश शासन लागू होने के बाद से प्राप्त होता हैं।
सन 1962 से पहले इस राज्य को नार्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के नाम से जाना जाता था। संवैधानिक रूप से यह असम का ही एक भाग था परंतु सामरिक महत्त्व के कारण 1965 तक यहां के प्रशासन की देखभाल विदेश मंत्रालय करता था।
1965 के बाद असम के राज्पाल के द्वारा यहां का प्रशासन गृह मंत्रालय के अन्तर्गत आ गया था। सन 1972 में अरुणाचल प्रदेश को केंद्र शासित राज्य बनाया गया था और इसका नाम ‘अरुणाचल प्रदेश’ किया गया।
इस सब के बाद 20 फरवरी, 1987 को यह भारतीय संघ का 24वां राज्य बनाया गया। भारत और चीन के बीच 3,500 किलोमीटर की एक लंबी सीमा है। अरुणाचल और सिक्किम वाला तो पूर्वी हिस्सा कहलाता है, वहीं उत्तराखंड और हिमाचल वाले हिस्से को मध्य भाग कहा जाता है।
वहीं लद्दाख वाले इलाके से जुड़ी सीमाओं को पश्चिमी भाग का हिस्सा माना जाता है। लेकिन इस लंबी सीमा पर कई ऐसे इलाके हैं जहां पर चीन और भारत के बीच में जबरदस्त तकरार है। ये तकरार कई मौकों पर हिंसक रूप भी ले चुकी है। लद्दाख को लेकर तो ये विवाद उठता ही रहता है, अरुणाचल प्रदेश को लेकर भी चीन के दावे बड़े हैं।
चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत मानता है। उसकी नजरों में पूरा अरुणाचल प्रदेश ही चीन का हिस्सा है।
इसी वजह से जब-जब भारत के किसी नेता द्वारा अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया जाता है या फिर जब कभी विकास परियोजनाओं का वहां उद्घाटन होता है, चीन सबसे पहले प्रतिक्रिया देता है और इसे अपनी संप्रभुता से जोड़ देता है