कांग्रेस की बड़ी जीत (Congress’s big victory): कर्नाटक में 38 सालों का नहीं बदला ट्रेंड, चुनाव में भ्रष्टाचार और राज्य भाजपा में गुटबाजी हार का बड़ा कारण बना
मुख्यधारा डेस्क
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की मतगणना जारी है। इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, कांग्रेस 68 सीटों पर जीती है और 68 पर आगे है यानी कुल 136 सीटें। भाजपा को 30 पर जीत मिली है और 34 सीटों पर आगे है यानी कुल 64 सीटें। जेडीएस 12 सीटें जीती है और 8 पर आगे है, कुल 20 सीटें। अन्य 3 सीटों पर जीती और 1 पर आगे है यानी कुल 4 सीटें।
बता दें कि कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव कराए गए। बेंगलुरु से दिल्ली तक कांग्रेस खेमे में जश्न का माहौल है। रुझानों में कांग्रेस पार्टी राज्य में सरकार बनाती हुई दिख रही है।
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कर्नाटक में बीते 38 सालों का ट्रेंड बदलता नहीं दिखा। ट्रेंड के अनुसार एक बार फिर राज्य में सरकार बदलती रही है। रुझानों में कांग्रेस ने बड़ी बढ़त बनाते हुए बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है।
राज्य में 38 साल से सत्ता रिपीट नहीं हुई है। आखिरी बार 1985 में रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली जनता पार्टी ने सत्ता में रहते हुए चुनाव जीता था।
वहीं, पिछले पांच चुनाव (1999, 2004, 2008, 2013 और 2018) में से सिर्फ दो बार (1999, 2013) सिंगल पार्टी को बहुमत मिला।
भाजपा 2004, 2008, 2018 में सबसे बड़ी पार्टी बनी। उसने बाहरी सपोर्ट से सरकार बनाई। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा हावी रहा।
चुनाव से कुछ समय पहले ही भाजपा के एक विधायक के बेटे को रंगे हाथों घूस लेते हुए पकड़ा गया था। इसके चलते भाजपा विधायक को भी जेल जाना पड़ा।
एक ठेकेदार ने भाजपा सरकार पर 40 प्रतिशत कमिशनखोरी का आरोप लगाते हुए फांसी लगा ली थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को पूरे चुनाव में जोरशोर से उठाया।
राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गांधी तक ने इस मुद्दे को खूब भुनाया। जनता के बीच भाजपा की छवि धुमिल हुई और पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इस वक्त दक्षिण बनाम उत्तर की बड़ी लड़ाई चल रही है। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और मौजूदा समय केंद्र की सत्ता में है। ऐसे में भाजपा नेताओं ने हिंदी बनाम कन्नड़ की लड़ाई में मौन रखना ठीक समझा।
वहीं, कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने मुखर होकर इस मुद्दे को कर्नाटक में उठाया। नंदिनी दूध का मसला इसका उदाहरण है।
कांग्रेस ने नंदिनी दूध के मुद्दे को खूब प्रचारित किया। एक तरह से ये साबित करने की कोशिश की है कि भाजपा उत्तर भारतीय कंपनियों को बढ़ावा दे रही है, जबकि दक्षिण के लोगों को किनारे लगाया जा रहा है।
कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया। पार्टी को इससे फायदे की उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त में कांग्रेस ने बड़ा पासा फेंक दिया।
कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का एलान कर दिया। इसने भाजपा के हिंदुत्व को पीछे छोड़ दिया। आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया।
लिंगायत वोटर्स से लेकर ओबीसी और दलित वोटर्स तक ने कांग्रेस का साथ दिया। पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही थी। ऐसे समय टिकट बंटवारे को लेकर भी बड़ी गड़बड़ी हुई। पार्टी के कई दिग्गज नेताओं का टिकट काटना भाजपा को भारी पड़ा। पार्टी नेताओं की बगावत ने भी कई सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचाया है। इसके साथ भाजपा की राज्य में आंतरिक गुटबाजी भी हार का बड़ा कारण बनी।
भाजपा में आंतरिक कलह की खबरें सामने आ चुकी थीं। कर्नाटक भाजपा में कई धड़े बन चुके थे। एक मुख्यमंत्री पद से हटाए गए बीएस येदियुरप्पा का गुट था, दूसरा मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का, तीसरा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और चौथा भाजपा प्रदेश नलिन कुमार कटील का था। फिलहाल भाजपा खेमे में मायूसी का माहौल है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ा हुआ था। इसका बड़ा कारण यह है कि पीएम मोदी ने राज्य में तूफानी दौरे किए और ताबड़तोड़ चुनावी रैली जनसभाएं की।