Uttarakhand : गौरीकुंड में भूस्खलन (landslide in Gaurikund) के बाद मची तबाही - Mukhyadhara

Uttarakhand : गौरीकुंड में भूस्खलन (landslide in Gaurikund) के बाद मची तबाही

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Uttarakhand : गौरीकुंड में भूस्खलन (landslide in Gaurikund) के बाद मची तबाही

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देशभर में बारिश के कारण बाढ़ और लैंडस्लाइड के मामले सामने आ रहे है। ऐसे ही बता दें इस बार उत्तराखंड का भी बहुत बुरा हाल देखा जा रहा है। ऐसे ही एक और मामला सामने आ रहा है जहां गौरीकुंड के पास भूस्खलन की वजह से 20 ज्यादा लोग लापता बताये जा रहे है। देखा जाए तो सोनप्रयाग से गौरीकुंड के बीच करीब छह किलोमीटर का क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। दुकानों के मलबे से तीन शव बरामद किए गए लेकिन 20 लोग अभी भी लापता हैं। उत्तराखंड के गौरीकुंड में शुक्रवार आधी रात हुए भूस्खलन के दौरान लापता हुए 20 लोगों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त मंदाकिनी नदी उफान पर थी।

जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय आपदा मोचन बल, राज्य आपदा प्रतिवादन बल, यात्रा प्रबंधन बल, पुलिस और अग्निशमन विभाग के कार्मिकों ने रविवार को धारी देवी से कुंड बैराज तक ड्रोन की मदद से लापता लोगों की तलाश की, लेकिन लापता लोगों का पता नहीं चल सका। रुक-रुक कर हो रही बारिश और पहाड़ों से गिर रहे पत्थरों के कारण राहत और बचाव कार्य में बाधा आ रही है। केदारनाथ जाते समय गौरीकुंड में अचानक आई बाढ़ के कारण हुए भूस्खलन में लापता हुए 20 लोगों को ढूंढने के लिए बचाव दल रविवार से ही अथक
प्रयास कर रहे हैं।

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गुरुवार और शुक्रवार की मध्यरात्रि को लगभग 12 बजे भूस्खलन हुआ, जिससे बरसाती झरने के करीब और मंदाकिनी नदी से लगभग 50 मीटर ऊपर स्थित तीन दुकानें बह गईं। नदियों का जलस्तर बढ़ने से जहां भी बाढ़ की समस्या आ रही है, उन सभी स्थानों को खाली किया जाए और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाए। मुख्यमंत्री ने भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील इलाकों के आसपास बनी इमारतों एवं कच्चे मकानों में रह रहे लोगों को भी सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के निर्देश दिए। जलवायु पर्वितन का खतरा वास्तविक है, संकट सामने है और भविष्य तबाही वाला है।

आइपीसीसी-2021 की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह बात कही गई है। हम सब रोजाना की जिंदगी में इन संकटों का अनुभव कर रहे हैं अत्यधिक गर्मी के कारण जंगलों में आग से लेकर प्रलयंकारी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। समुद्र और जमीन के तापमान में अंतर के
कारण भयंकर चक्रवात बन रहे हैं। इस साल भारत में बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन के कई मामले सामने आए हैं। पिछले तीन साल में उत्तराखंड में 7,500 से ज्यादा बार अत्यधिक बारिश के मामले दर्ज किए गए हैं।

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यह बात सब जानते हैं कि घटती बर्फ, पिघलते ग्लेशियर और इसी तरह की अन्य घटनाएं उत्तराखंड और अन्य हिमालयी राज्यों में अप्रत्याशित मौसम का कारण बन रही हैं। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण जमीन और हवा पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। भारत जलवायु परिवर्तन के कारण कई तरह की आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का भी सामना कर रहा है। हालिया अध्ययनों में पाया गया है कि यदि जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ रहे दुष्प्रभावों न होते तो भारत की जीडीपी करीब 25 प्रतिशत ज्यादा होती। वैश्विक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से कृषि क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव, समुद्र का जलस्तर बढ़ने और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण भारत की जीडीपी 10 प्रतिशत कम हो सकती है।

विज्ञान पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु पर्वितन की वजह से असामान्य सर्दी या गर्मी के कारण भारत में सालाना 7.4 लाख अतिरिक्त मौत का अनुमान है। कम आय वाले और हाशिए पर जी रहे लोग जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। पेरिस समझौता और अब आगामी सीओपी 26 से कई उम्मीदें हैं। कई देशों ने औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को औद्योगिक काल के औसत तापमान की तुलना में दो डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2015 में नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (एनडीसी) को पेश किया था।

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भारत उत्सर्जन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। कुल वैश्विक उत्सर्जन में इसकी हिस्सेदारी सात प्रतिशत है और यहां प्रति व्यक्ति सालाना कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन 134 किलोग्राम है, जो कि वैश्विक औसत से कम है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देश ऐतिहासिक तौर पर जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में भारत को जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के कदमों के लिए लागत वहन नहीं करना चाहिए। भारत ने पहले ही 2030 तक उत्सर्जन को 2015 की तुलना में 33 से 35 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा है। भारत न केवल अपने लक्ष्य की ओर सही गति से बढ़ रहा है, बल्कि 2030 तक इससे आगे पहुंच जाएगा।

अमेरिका और यूरोपीय सहित विकसित देश लक्ष्य से बहुत पीछे चल रहे हैं। उन्हें नजीर स्थापित करनी होगी। जरूरी नहीं है कि केवल बारिश के मौसम में ही भूस्खलन हो। यह एक प्राकृतिक परिवर्तन है, जो कभी-भी हो सकता है। लैंडस्लाइड के अलावा बर्फीले पहाड़ों का टूट कर गिरना भी ऐसी ही आपदा है। कभी-कभी भारी मूसलाधार बरसात या भूकम्‍प भी भूस्‍खलन का कारण बन सकते हैं। इंसानों द्वारा क्रियाकलाप, जैसे कि पेड़ों और वनस्‍पतियों को साफ किया जाना, सड़कों का गहरा कटाव या पानी के पाईपों के रिसाव से भी भूस्‍खलन हो सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों ने इनके लिए मानवीय हस्तक्षेप को प्रमुख रूप से जिम्मेदार ठहराया है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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