पॉलीगोनम (polygonum) अल्पाइन पुष्पों की बन रही दुश्मन - Mukhyadhara

पॉलीगोनम (polygonum) अल्पाइन पुष्पों की बन रही दुश्मन

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पॉलीगोनम (polygonum) अल्पाइन पुष्पों की बन रही दुश्मन

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी के लिए पाॅलीगोनम नाम की घास जिस पर फूल भी उगते है, यहां के अन्य फूलों के लिए भस्मासुर साबित हो रहा है। एक दशक पूर्व उपजे इस घास नुमा झाड़ी ने दो किमी क्षेत्र तक अपना फैलाव कर फूलों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर दिया है। हालांकि नंदादेवी वायोस्फियर ने पाॅलीगोनम को हटाने का काम तो कर रही है परंतु रक्त बीज की तरह यह फिर से उग आता है।

पाॅलीगोनम नामक पौध अपने आसपास वनस्पतियों को खत्म कर देता है, जिससे चलते यह पौध राष्ट्रीय उद्यान के लिए खतरे का सबब बन सकती है। पिछले आठ साल से वन विभाग इससे पार पाने की कोशिशों में जुटा है लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। चमोली जिले में सिखों के धार्मिक स्थल हेमकुंड साहिब जाने वाले रास्ते पर घांघरिया से पांच किमी की दूरी पर 87.50 वर्ग किमी में फैली है फूलों की घाटी। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस घाटी में फूलों की 525 से अधिक प्रजातियों के फूल खिलते है।

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रंग-बिरंगे फूलों की बिखरी छटा के बीच घाटी में खिले पॉलीगोनम ने चिंता बढ़ा दी है। पॉलीगोनम को अमेला अथवा नटग्रास भी कहते हैं। घाटी से लौटे पर्यटक बताते हैं कि वर्तमान में पुष्पगंगा से आगे प्रियदर्शनी तोक तक करीब दो किलोमीटर के दायरे में पॉलीगोनम पसरा हुआ है। नंदादेवी बायोस्फियर रिजर्व के डीएफओ बताते हैं कि भले ही पॉलीगोनम झाड़ीनुमा फूल प्रजाति है लेकिन इसका विस्तार तेजी से होता है। दो मीटर तक की लंबाई वाला इसका झाड़ दूसरे पौधों को पनपने नहीं देता।

कहते हैं कि इसका फैलाव रोकने के लिए कार्ययोजना बनाकर वर्ष 2008 से इसे उखाड़ने का काम चल रहा है। हर साल 40-50 हेक्टेयर क्षेत्र में पॉलीगोनम को नष्ट किया जाता है लेकिन यह कहीं न कहीं रह जाता है। इस बार भी हम कोशिश करेंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब विश्व धरोहर फूलों की घाटी की जैवविविधता के लिए अभिशाप बन चुके पॉलीगोनम व ब्राउन फर्न के पौधों को प्राइमरी स्टेज में ही हटाने का काम शुरू कर दिया गया है। इसमें मजदूर लगे हैं और पहले चरण में 15 हेक्टेयर क्षेत्र को पॉलीगोनम के पौधों से मुक्त किया जा चुका है। विदित हो कि खरपतवार प्रजाति के ये दोनों ही फूल घाटी में रक्तबीज की तरह फैल रहे हैं।

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बीते एक दशक में सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में कब्जा जमा चुके हैं। चमोली जिले में समुद्रतल से 12995 फीट की ऊंचाई पर 87.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली फूलों की घाटी में पॉलीगोनम व ब्राउन फर्न के फूल सैकड़ों प्रजाति के दुर्लभ फूलों का अस्तित्व संकट में डाल रहे हैं। बीते एक दशक में घाटी के 65 हेक्टेयर क्षेत्रफल में पॉलीगोनम और 35 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ब्राउन फर्न फैल चुका है। इसके चलते इन खरपतवारों के पौधों के नीचे दुर्लभ प्रजाति के फूल व जड़ी-बूटियों के पौधे नहीं पनप पा रहे।

बीते वर्षो में वन विभाग इन दोनों पौधों को हटाता तो रहा था, लेकिन यह अभियान तब चलता था, जब इन पर फूल खिल जाते थे।  पॉलीगोनम वब्राउन फर्न का प्रसार गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। वर्तमान में यहां पॉलीगोनम की चार प्रजातियां पनप चुकी हैं। इन खरपतवार के पौधों की लंबाई ज्यादा होने के कारण इनके नीचे छोटी प्रजाति के फूलों के पौधे नहीं पनप पाते। इसलिए इस बार प्राइमरी स्टेज में ही इनके उन्मूलन का कार्य शुरू कर दिया गया। घाटी में खरपतवारों के पनपने की मुख्य वजह वहां भेड़-बकरियों के चरान-चुगान पर रोक लगाया जाना है। पहले घाटी में भेड़-बकरी चुगान प्रतिबंधित नहीं था। पसंदीदा आहार होने के कारण भेड़-बकरियों पॉलीगोनम (अमेला) को चट कर जाती थीं 1982 को फूलों की घाटी को नंदा देवी बायोस्फियर का हिस्सा घोषित कर दिया गया। साथ ही यहां भेड़-बकरियों के चुगान को भी प्रतिबंधित भी कर दिया गया। इससे घाटी में पॉलीगोनम का तेजी से फैलता चला गया। वैज्ञानिक  के अनुसार घाटी में खरपतवारों के उन्मूलन के लिए वैज्ञानिक तरीका नहीं अपनाया जाता। अकुशल मजदूर पॉलीगोनम वब्राउन फर्न को हटाने का काम करते हैं, जिससे दुलर्भ प्रजाति के फूलों को भी नुकसान पहुंचता है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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