मुख्यधारा/देहरादून
रिश्वत का लालच (rishwat ka lalach) है ही ऐसी बला। इसकी साया पड़ते ही भला इससे कौन बच सकता है, लेकिन कहते हैं इस पर अच्छे अच्छों के पैर फिसल जाते हैं। ऐसे ही गत दिवस देहरादून स्थित सचिवालय में तैनात एक समीक्षा अधिकारी के साथ भी हुआ। वह रिश्वतखोरी के लालच में विजिलेंस के हाथों चढ गए। ऐसे में सुख-चैन से जीवनयापन कर रहे उनके परिवार की भी रातों की नींद उड़ गई।
दरअसल हुआ यह कि सिंचाई विभाग से 2008 में सेवानिवृत्त एक जेई किशन चंद अग्रवाल की ग्रेच्युटी रुकी हुई थी। बताया गया कि उस दौरान उनके स्टोर से कुछ सामान गायब होने के कारण उसकी भरपाई के लिए विभाग ने 2013 में उनकी ग्रेच्युटी से पैसा काटा। इस पर उन्होंने ट्रिब्यूनल में अपील की, जहां से उनके पक्ष में फैसला आया और पैसा भुगतान के आदेश दिए। लेकिन विभाग ने हाईकोर्ट में अपील कर दी। हाईकोर्ट ने भी उनके पक्ष में ही फैसला सुनाया।
इसके बाद किशन चंद ने सचिवालय के अनुभाग अधिकारी अनिल पुरोहित से इस संबंध में बात की। जिस पर बीती 22 फरवरी को उन्हें ऑफिस बुलाया गया। 24 फरवरी को किशन चंद कार्यालय पहुंचे, जहां अनुभाग अधिकारी अनिल पुरोहित और समीक्षा अधिकारी कमलेश्वर प्रसाद मौजूद थे।
इस दौरान अनुभाग अधिकारी व समीक्षा अधिकारी ने ग्रेच्युटी का पैसा देने और हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर न करने के एवज में एक लाख रुपए रिश्वत (rishwat ka lalach) की मांग कर डाली। इसकी शिकायत अग्रवाल ने विजिलेंस से कर दी।
विजिलेंस की गोपनीय जांच के बाद उन्हें 28 फरवरी को रिश्वत लेने के लिए बुलाया गया। जिस पर 28 फरवरी सोमवार को किशन चंद 75 हजार रुपए लेकर सचिवालय के बाहर पहुंचे। अनुभाग अधिकारी अनिल पुरोहित ने समीक्षा अधिकारी कमलेश्वर प्रसाद को सचिवालय गेट के बाहर रिश्वत लेने के लिए भेजा, लेकिन जैसे ही किशन चंद अग्रवाल ने कमलेश्वर प्रसाद को रिश्वत (rishwat ka lalach) के पैसे दिए, विजिलेंस टीम ने उसे रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
विजिलेंस एसपी धीरेंद्र कुमार गुंज्याल के अनुसार उक्त कार्रवाई देहरादून सेक्टर की टीम द्वारा की गई है।