दुनिया भर में खाया जाने वाला मशहूर फल संतरा (Orange) - Mukhyadhara

दुनिया भर में खाया जाने वाला मशहूर फल संतरा (Orange)

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दुनिया भर में खाया जाने वाला मशहूर फल संतरा (Orange)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

हिमालय विश्व के सभी खट्टे फलों का जन्मस्थान है जिनमें संतरा प्रमुख फल है। संतरे का रंग संतरी होता है। इसी वजह से इसे संतरा नाम दिया गया है।संतरे के पेड़ की औसत लंबाई लगभग 10 मीटर होती है। इसके पेड़ पर सफेद रंग के फूल लगते हैं, जिनकी सुगंध अत्यंत ही मनमोहक होती है। संतरे को पोषित होने के लिए अच्छी मात्रा में धूप तथा 15 से 29 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है, शुरू में इसका रंग हरा व समय के साथ यह संतरी रंग का हो जाता है, जो स्वाद में लाजवाब होता है. दुनियां भर में ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको, चीन और भारतीय राज्यों हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, मिजोरम में बड़े पैमाने पर संतरे का उत्पादन किया जाता है।

भारत दुनियां में संतरे के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु और भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन के कारण संतरों की गुणवत्ता और आकार में काफी भिन्नता देखने को मिलती संतरा को सर्दी का सबसे बेस्ट फल माना जाता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी होता है। जो आपकी इम्युनिटी को मजबूत रखता है। हेल्थ एक्सपर्ट अक्सर यह बात कहते हैं कि खासकर सर्दी में आपकी इम्युनिटी कमजोर होगी तो आप जल्दी-जल्दी कोल्ड-कफ का शिकार हो जाएंगे। आजकल ज्यादातर लोग ब्रेकफास्ट में संतरे का जूस पीना पसंद करते हैं। क्योंकि कहते हैं दिन की शुरुआतहेल्दी ब्रेकफास्ट के साथ करनी चाहिए। संतरा का स्वाद हल्का मीठा और खट्टा होता है जिसके कारण इसे पीते ही बहुत ही फ्रेश महसूस होता है।

पोषक तत्व         मात्रा – १०० ग्राम
पानी                     86.77 ग्राम
ऊर्जा                     47 कैलौरी
कार्बोहाइड्रेट          11.8 ग्राम
प्रोटीन                   0.9 ग्राम
वसा                      0.15 ग्राम
फाइबर                2.4 ग्राम
शुगर                    9.4 ग्राम
विटामिन सी         53.2 मिलीग्राम

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लेकिन सवाल यह है कि ठंड के मौसम में संतरा खाने या उसके जूस पीने का कौन सा सही वक्त होता है इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी होता है। यह ग्लोइंग स्किन के लिए काफी अच्छा होता है साथ ही पेट भी अच्छा रहता है। संतरे में पोटेशियम व फोलिक एसिड, कैल्शियम और कोलेस्ट्रॉल के स्तर तथा उच्च रक्तचाप को नियंत्रित रखता है। ये तत्व कोशिकाओ में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन करके हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक हैं। पोटेशियम मस्तिष्क में ऑक्सीजन के संचार में सहायता करता है,जिससे तनाव और अवसाद से छुटकारा मिलता है। बीस -तीस सालों से नवम्बर-दिसम्बर माह आते ही हर बर्ष विपणन की समस्या को लेकर माल्टा फल चर्चाओं में आ जाता है।

कभी गढ़वाल एवं कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा माल्टा बेचने की बात हुई, कभी तिलवाड़ा जनपद रुद्रप्रयाग में गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा माल्टा फल के प्रोसेसिंग की बात, कभी मटैला अल्मोड़ा में कोल्ड स्टोरेज की बात, तो कभी किसानों को कलेक्स सेन्टर पर पहुंचाने पर 7-8-9 रुपये प्रतिकिलो समर्थन मूल्य देने की बात और अब उत्तराखंड के माल्टा से गोवा में बनेगी बाइन, माल्टा को जीआई टैग आदि इतने सारे  सरकारों के प्रयास से इस बर्ष भी माल्टा उत्पादकों के चेहरे अच्छे भाव न मिल पाने के कारण उदास है।

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सरकारों की कोई दीर्घकालिक योजना न होने के कारण माल्टा उत्पादक हतास व निराश हैं। राज्य के पास फल उत्पादन के सही, वास्तविक आंकड़े ही नहीं है। बिना वास्तविक सही आंकड़ों के सही नियोजन की बात करना बेमानी है। विभागीय फल उत्पादन के बर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार पौड़ी जनपद, जिसको एक जनपद एक उत्पाद के अन्तर्गत नीम्बू वर्गीय फलों के अन्तर्गत चुना गया है, 2700.00 हैक्टेयर क्षेत्र फल में 5545.00 मैट्रिक टन उत्पादन दर्शाया गया है। जबकि पलायन आयोग की बर्ष 2016-17  की रिपोर्ट के अनुसार नीम्बूवर्गीय फल 831.06 हैक्टेयर क्षेत्र फल में 4710.00 मैट्रिक टन ही उत्पादन दर्शाया गया है। याने विभागीय आंकड़ों से 4714.00 हैक्टेयर कम  यही हाल सभी जनपदों का है। उत्पादित माल्टा का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाय।

वर्तमान में कम दरों पर माल्टा उत्पादक कलैक्शन सैन्टर तक माल्टा पहुंचाने में असमर्थ हैं।राज्य में कई संगठन व संस्थाएं अच्छा कार्य कर रहे हैं यह संस्थान,एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना (ILSP) के तकनीकी सहयोग से चलाया जा रहा है। इस केन्द्र पर जनपद में हर मौसम में उत्पादित स्थानीय फलों जैसे माल्टा, बीजू आम,बीजू आंवला के साथ-साथ बुरांस एवं लिंगुडा का भी प्रोसेसिंग किया जाता है। इनसे कई तरह के पेय एवं अचार के साथ ही विभिन्न संस्थाओं एवं कम्पनियों के लिए पल्प की भी आपूर्ति की जाती है। इस केन्द्र द्वारा हर मौसम के जनपद में उत्पादित फलों का प्रसंस्करण इस मौसम में (नवम्बर दिसम्बर) जहां अन्य जनपदों में माल्टा को बाजार न मिलने की चर्चाएं हैं वहीं ‘ध्वज आजीविका स्वायत्त सहकारिता कनालीछीना पिथौरागढ़’ आस पास क्षेत्र के सभी स्थानीय फल उचित दामों में क्रय कर प्रोसेसिंग कर कई लोगों को स्थाई रोजगार के साथ ही समूह से जुड़ेसभी सदस्यों को आत्मनिर्भर बना रहा है इसी की तर्ज पर राज्य में अवस्थित राजकीय फल संरक्षण केन्द्रों से कार्य लिया जा सकता है।

अच्छी गुणवत्ता वाली पौध हेतु राज्य में अच्छी गुणवत्ता युक्त नीम्बूवर्गीय पौधों के बीजों से न्यूसेलर सीडलिंग के पौधों का उत्पादन कर योजनाओं में वितरण किया जाय। अधिकांश सिट्रस प्रजातियां बहुभ्रूणी होती हैं अर्थात जिनमें एक बीज से 2-3 या अधिक भ्रूण निकलते हैं। इनमें से केवल एक लैंगिक भ्रूण होता है बाकी सभी दूसरे भ्रूण न्यूसेलस की कोशिकाओं से बनते हैं इन्हें न्यूसेलर सीडलिंग कहा जाता है। अनुवांशिकी रूप से ये मातृ वृक्ष के ही समान होते हैं।कृषि विज्ञान केन्द्र जाखधार रुद्रप्रयाग के बैज्ञानिकों द्वारा माल्टा व नारंगी के न्यूसेलर सीडलिंग वाले पौधे तैयार किए जाते हैं यह प्रयास अन्य कृषि विज्ञान केन्द्रों राजकीय उद्यानों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा भी किया जा सकता है। माल्टा फलों को गर्मियों तक सुरक्षित रखने हेतु माल्टा उत्पादित ऊंचे, ठडें छाया दार स्थानों में सस्ती टैक्नोलॉजी वाले कूल हाउसों का निर्माण कराया जा सकता है।

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हर बर्ष एक करोड़ यात्री व पर्यटक उत्तराखंड में अप्रेल से लेकर अगस्त– सितंबर तक भ्रमण पर आते हैं उस समय अधिकतर यात्रा रूट्स में
कोई भी स्थानीय फल नहीं दिखाई देता,माल्टा के स्थान पर गर्मियों व बर्षात के मौसम में तैयार होने वाले फलों, आडू प्लम खुवानी आदि का रोपण सेब मिशन योजना की तरह करवाने के प्रयास होने चाहिए। नैनीताल व रामगढ़ क्षेत्रों में स्टोन फ्रुट्स (आड़ू प्लम खुवानी) का स्थानीय लोगों के प्रयास से अच्छा उत्पादन हो रहा है व इससे फल उत्पादक पर्यटकों को बेचकर अच्छी आय भी अर्जित कर रहे हैं।उत्पादित माल्टा का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाय। वर्तमान में कम दरों पर माल्टा उत्पादक कलैक्शन सैन्टर तक माल्टा पहुंचाने में असमर्थ हैं।

राज्य में कई संगठन व संस्थाएं अच्छा कार्य कर रहे हैं, 2021 में मुझे हिलांस फल प्रसंस्करण ग्रोथ सेन्टर कनालीछीना पिथौरागढ़ केन्द्र ‘ध्वज
आजीविका स्वायत्त सहकारिता कनालीछीना पिथौरागढ़’ को अवलोकन करने का अवसर मिला यह संस्थान, एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना (ILSP) के तकनीकी सहयोग से चलाया जा रहा है। इस केन्द्र पर जनपद में हर मौसम में उत्पादित स्थानीय फलों जैसे माल्टा, बीजू आम,बीजू आंवला के साथ-साथ बुरांस एवं लिंगुडा का भी प्रोसेसिंग किया जाता है। इनसे कई तरह के पेय एवं अचार के साथ ही विभिन्न संस्थाओं एवं कम्पनियों के लिए पल्प की भी आपूर्ति की जाती है। इस केन्द्र द्वारा हर मौसम के जनपद में उत्पादित फलों का प्रसंस्करण इस
मौसम में (नवम्बर दिसम्बर) जहां अन्य जनपदों में माल्टा को बाजार न मिलने की चर्चाएं हैं।

वहीं ‘ध्वज आजीविका स्वायत्त सहकारिता कनालीछीना पिथौरागढ़’ आस पास क्षेत्र के सभी स्थानीय फल उचित दामों में क्रय कर प्रोसेसिंग कर कई लोगों को स्थाई रोजगार के साथ ही समूह से जुड़े सभी सदस्यों को आत्मनिर्भर बना रहा है इसी की तर्ज पर राज्य में अवस्थित राजकीय फल संरक्षण केन्द्रों से कार्य लिया जा सकता है। अच्छी गुणवत्ता वाली पौध हेतु राज्य में अच्छी गुणवत्ता युक्त नीम्बूवर्गीय पौधों के बीजों से न्यूसेलर सीडलिंग के पौधों का उत्पादन कर योजनाओं में वितरण किया जाय। अधिकांश सिट्रस प्रजातियां बहुभ्रूणी होती हैं अर्थात जिनमें एक बीज से 2– 3 या अधिक भ्रूण निकलते हैं। इनमें से केवल एक लैंगिक भ्रूण होता है बाकी सभी दूसरे भ्रूण न्यूसेलस की कोशिकाओं से बनते हैं इन्हें न्यूसेलर सीडलिंग कहा जाता है।

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अनुवांशिकी रूप से ये मातृ वृक्ष के ही समान होते हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र जाखधार रुद्रप्रयाग के बैज्ञानिकों द्वारा माल्टा व नारंगी के न्यूसेलर सीडलिंग वाले पौधे तैयार किए जाते हैं यह प्रयास अन्य कृषि विज्ञान केन्द्रों राजकीय उद्यानों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा भी किया जा सकता है। माल्टा फलों को गर्मियों तक सुरक्षित रखने हेतु माल्टा उत्पादित ऊंचे, ठडें छाया दार स्थानों में सस्ती टैक्नोलॉजी वाले कूल हाउसों का निर्माण कराया जा सकता है। हर बर्ष एक करोड़ यात्री व पर्यटक उत्तराखंड में अप्रेल से लेकर अगस्त– सितंबर तक भ्रमण पर आते हैं उस समय अधिकतर यात्रा रूट्स में कोई भी स्थानीय फल नहीं दिखाई देता,माल्टा के स्थान पर गर्मियों व बर्षात के मौसम में तैयार होने वाले फलों, आडू प्लम खुवानी आदि का रोपण सेब मिशन योजना की तरह करवाने के प्रयास होने चाहिए। नैनीताल व रामगढ़ क्षेत्रों में स्टोन फ्रुट्स (आड़ू प्लम खुवानी) का स्थानीय लोगों के प्रयास से अच्छा उत्पादन हो रहा है व इससे फल उत्पादक पर्यटकों को बेचकर अच्छी आय भी अर्जित कर रहे हैं।

संतरा एक ऐसा फल है जो देश भर में सर्वत्र सुलभ रहता है और ज्यादा महंगा भी नहीं होता। संतरे का सेवन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। संतरे को नारंगी भी कहते हैं। इसका उपयोग सामान्यत: रस पीने में किया जाता है। यह प्यास का शमन करने और शरीर में तरावट लाने वाला फल है। उपवास के समय इसका रस पीना श्रेष्ठ रहता है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग घरेलू इलाज के रूप में भी किया जाता है। यह खट्टा और मीठा दो प्रकार का होता है। मीठा संतरा तरावट देने वाला, प्यास बुझाने वाला, शीतल और रूचिदायक होता है।यह कफकारक, कुछ दस्तावर, वातनाशक, अलकारक, भूख बढ़ाने वाला, बलवर्द्धक, पचने में भारी और हृदय के लिए हितकारी होता है। ज्वर की अवस्था में इसका उपयोग लाभप्रद होता है। इसमें विटामिन ए और बी साधारण मात्र में और विटामिन सी पर्याप्त मात्र में पाया जाता है।

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संतरे में पेक्टिन और फ्लेवोनोन हेस्पेरिडॉन नामक तत्व पाए जाते हैं जो कि कोलेस्ट्रॉल को सामान्य बनाए रखने में मदद करते हैं। इन दोनों तत्वों की उपस्थिति के कारण कोलेस्ट्रॉल रक्त में प्रवेश नहीं कर पाता है जिससे ब्लड सर्कुलेशन अच्छा रहता है। संतरे का सेवन मधुमेह में लाभकारी माना जाता है। संतरे में फाइबर अच्छी मात्रा में होता है, फाइबर ब्लड शुगर लेवल को बढ़ने से रोकता है, इसलिए संतरे का सेवन करना मधुमेह में फायदेमंद होता है।संतरे में डी- लिमोनेन नामक एक कंपाउंड होता है जो फेफड़ों के कैंसर, स्किन कैंसर और स्तन कैंसर को रोकने में सहायक होता है। संतरे में मौजूद विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट दोनों ही शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये कैंसर से लड़ने में मदद करते हैं और संतरे की रेशेदार लेयर भी कैंसर से बचाव में सहायक होती है।

संतरा में एस्कॉर्बिक एसिड और बीटा कैरोटीन होता है जो शरीर में कैंसर के खतरे को कम करते हैं। इस बार सिटरस फलों की पैदावार अच्छी हुई है। अभी संतरा, का समर्थन मूल्य तय नहीं किया गया है। सरकार और उद्यान विभाग की ओर से विपणन की कोई व्यवस्था न होने और
समर्थन मुल्य बहुत ही कम घोषित किये जाने के कारण काश्तकार अपने माल्टे, नींबू संतरे सहित अन्य फलों को या तो  विचैलियो के हाथों औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं या वे पेड़ों पर ही बर्बाद हो रहे हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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