मराठा साम्राज्य के संस्थापक ओजस्वी व्यक्तित्व शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj) - Mukhyadhara

मराठा साम्राज्य के संस्थापक ओजस्वी व्यक्तित्व शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj)

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मराठा साम्राज्य के संस्थापक ओजस्वी व्यक्तित्व शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

आज छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती या शिवाजी जयंती, मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी की जयंती है। यह जयंती पूरे महाराष्ट्र में मनाई जाती है और एक सार्वजनिक अवकाश है। 19 फरवरी की तारीख इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि इसी दिन इस योद्धा का जन्म हुआ था जिसने अपनी बाहुदरी से विदेशी आक्रमणकारियों की नींद उड़ा दी थी। मात्र 16 साल की उम्र में उन्होंने किले पर कब्जा करने का संकल्प कर
लिया था और इसके बाद उन्होंने मराठाओं के सरदार के रूप में पहला किला भेदा। हालांकि छत्रपति शिवाजी महाराज के नौसेना के जनक के रूप में भी जाना जाता है।17वीं शताब्दी में जब छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन में मजबूत मराठा नौसेना ने कई विदेशी ताकतों से भारतीय जल क्षेत्र की हिफाजत की थी। उस वक्त छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना हथियारों और तोपों से लैस थी और दुश्मनों पर त्वरित प्रहार करने के लिए जानी जाती थी। उस वक्त अरब, पुर्तगाली, ब्रिटिश और समुद्री लुटेरे कोंकण और गोवा के समंदर के रास्ते भारत में घुसने की कोशिश करना चाहते थे लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने समदंर की रक्षा के लिए नौसेना की ही स्थापना कर दी थी।

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भारतीय इतिहास में कई ऐसे पराक्रमी राजा हुए जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए जान की बाजी तक लगा दी लेकिन कभी दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। जब भी ऐसे राजाओं की बात होती है तो हमारी जुबां पर पहला नाम छत्रपति शिवाजी महाराज का ही आता है। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध देशवासियों के मनोबल को मजबूत किया और ढलती हिन्दू तथा मराठा संस्कृति को नई संजीवनी दी। उन्होंने कौशल और योग्यता के बल पर मराठों को संगठित कर कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। 1674 में उन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की, रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह छत्रपति बने।शिवाजी के जीवन पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। माता जीजाबाई एक साहसी, राष्ट्र- प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। उन्होंने अपने वीर पुत्र में बचपन से ही राष्ट्रप्रेम और नैतिकता की भावना कूट- कूट कर भरी जिसकी वजह से शिवाजी अपने जीवन के उद्देश्यों को हासिल करने में सफल होते चले गए और कई दिग्गज मुगल निजामों को पराजित कर मराठा साम्राज्य की नींव रखी।

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पिता शाहजी राजे भोसले ने पत्नी जीजाबाई और पुत्र शिवाजी महाराज की सुरक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी दादोजी कोंडदेव के मजबूत कंधों
पर छोड़ी थी। इनसे ही शिवाजी महाराज ने राजनीति एवं युद्ध कला की शिक्षा ली थी। बचपन में ही वह अपने आयु के बालकों को इकट्ठा कर उनके नेता बन कर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। इसके बाद वह वास्तव में किलों को जीतने लगे जिससे उनका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे देश में पड़ने लगा और उनकी ख्याति बढ़ती चली गई। कम सैनिकों के बावजूद छापामार युद्ध में उनका कोई सानी नहीं था।शिवाजी ने मुगल जनरल अफजल खां को चतुराई से मार डाला। वहीं शाइस्ता खान किसी तरह जान बचाकर भाग सका लेकिन शिवाजी
महाराज के साथ हुई लड़ाई में उसको अपनी 4 उंगलियां खोनी पड़ीं।

मुगल शासक औरंगेजेब से समझौते के बाद शिवाजी महाराज 9 मई, 1666 को अपने ज्येष्ठ पुत्र संभाजी और कुछ सैनिकों के साथ मुगल दरबार में पधारे। औरंगजेब ने शिवाजी महाराज और उनके बेटे को बंदी बना लिया लेकिन शिवाजी महाराज चतुराई से 13 अगस्त, 1666 को अपने बेटे के साथ फलों की टोकरी में छिपकर आगरा के किले से भाग निकले और 22 सितंबर, 1666 को रायगढ़ पहुंच गए। हिंदुओं पर संकट देख शिवाजी ने महज 15 साल की उम्र में हिंदू साम्राज्य की स्थापना करने के उद्देश्य से बीजापुर पर हमला कर दिया और आदिलशाह को मौत के घाट उतार दिया। साल 1656 में आदिलशाह की मौत के बाद औरंगजेब ने भी बीजापुर पर हमला कर दिया। शिवाजी ने इसके
खिलाफ मोर्चा खोल दिया रायगढ़ के किले में औपचारिक रूप से काशी के ब्राह्मणों ने शिवाजी का राज्याभिषेक कराया। छत्रपति यानी मराठा साम्राज्य के सम्राट के रूप में उनको ताज पहनाया गया।विजयनगर का पतन होने के बाद दक्षिण भारत में यह पहला हिंदू साम्राज्य था, जिसकी स्थापना के बाद शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज का ऐलान कर दिया था।

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फारसी का ज्यादा उपयोग होता देख शिवाजी ने अदालतों और प्रशासन में मराठी और संस्कृत के उपयोग को बढ़ावा देने का आदेश भी दिया था। औरंगजेब को चुनौती देने के साथ ही साथ शिवाजी अपने राज्य का विस्तार करते जा रहे थे। कहा जाता है कि उनके कारण ही औरंगजेब की दक्षिण में विस्तार की नीति फेल हो गई थी। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि शिवाजी की धरती पर ही औरंगजेब ने अपनी सांसें लीं। उसने अहमदनगर में तीन मार्च 1707 को दुनिया छोड़ी, जिसकी कब्र औरंगाबाद के खुल्दाबाद में स्थित है।उनका साम्राज्य मुंबई के दक्षिण में कोंकण से लेकर पश्चिम में बेलगांव, धारवाड़ और मैसूर तक फैला चुका था। शिवाजी उर्फ़ छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय शासक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। शिवाजी महाराज एक बहादुर, बुद्धिमान और निडर शासक थे। धार्मिक अभ्यासों में उनकी काफी रूचि थी।
रामायण और महाभारत का अभ्यास वे बड़े ध्यान से करते थे। मगर यहां भी औरंगजेब ने शिवाजी के साथ विश्वासघात किया।

शिवाजी के संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद औरंगज़ेब ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। आगरा की जिस जेल में उन्हें रखा गया था वहां पर हज़ारों सैनिकों का पहरा था। मगर शिवाजी अपने साहस और बुद्धि के दम पर उसे चकमा देकर वहां से फरार होने में कामयाब हो गए। इसके बाद शिवाजी ने अपनी सेना के पराक्रम के दम पर फिर से औरंगज़ेब से अपने 24 किले जीत लिए। इसके बाद उन्हें छत्रपति की उपाधि मिली थी। मराठा शासक शिवाजी के कमांडर तानाजी मालुसरे और जय सिंह प्रथम के किला रक्षक उदयभान राठौड़ के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में तानाजी मालुसरे की मौत हो गयी थी लेकिन यह मराठा यह किला जीतने में कामयाब रहे थे। इन्ही तानाजी मालसुरे के ऊपर एक फिल्म बनी है जो कि सुपरहिट हुई है।

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ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया यह मैदान वर्षों से कई राजनीतिक रैलियों, भाषणों, आंदोलनों का गवाह रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी दलों के नेताओं ने यहां रैलियों को संबोधित किया है। दरअसल, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने 2003 में अपनी पहली मुंबई रैली यहीं की थी। पहले , शिवाजी पार्क रैली आयोजित करने के लिए सबसे बड़ी खुली जगह थी और दादर में एक सेंट्रल लोकेशन होने के कारण, इसे राजनीतिक संदेश देने के लिए मैदान के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इसलिए, इसका काफी महत्व था। राजनीतिक दलों के लिए,पार्क में भारी भीड़ लाने का प्रबंधन करना कुछ मायने रखता था। राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बल ने दिप्रिंट को बताया, “शिवाजी पार्क रैली ने दिखाया कि आपको कितना जनता का समर्थन प्राप्त था।” छत्रपति शिवाजी महाराज सिर्फ महाराष्ट्र के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देशवासियों के लिए श्रद्धा और प्रेरणा के स्रोत हैं। ये लेखक के अपने विचार हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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